रावण के नहीं राम के मार्ग पर चलो।
(विजयादशमी : ३० सितम्बर)
किसी शिष्य ने पूछा : ‘‘गुरुजी ! रामजी की
विजय के पीछे किस सिद्धांत ने काम किया ?
गुरुजी बोले : ‘‘बेटा ! भगवान राम और
रावण दोनों शिवभक्त थे । दोनों बुद्धिमान, विद्वान थे ।
कुल-परम्परा से देखा जाय तो रावण पुलस्त्य ऋषि के कुल का ब्राह्मण है और रामजी
रघुकुल के क्षत्रिय हैं । कुल भी दोनों के ऊँचे हैं परंतु सूझबूझ की भिन्नता है ।
जो शरीर को मैं और संसार को मेरा मान के सुखी होने के
लिए सारी शक्तियाँ खर्च कर देता है वह रावण के रास्ते है । जो अपने आत्मा को ‘मैं व व्यापक
ब्रह्म को मेरा मानता है और प्राणिमात्र के हित में लगकर अपने चित्त में विश्रांति
पाता है वह रामजी के रास्ते है । चिंतन की धारा भिन्न होने के कारण परिणाम भिन्न
हैं । हम रामजी का तो पूजन करते हैं और रावण को हर बारह महीने में जलाते हैं
क्योंकि रावण बाहर सुख खोज रहा था । इन्द्रियों के द्वारा रस खोजकर - देख के, सूँघ के, सुन के, चख के, छू के या
काम-विकार भोग के मजा लेने की तरफ जिसकी चेतना बहती चली जा रही है, वह रावण के
स्वभाव को प्राप्त होता है । रावण दसों इन्द्रियों को बाहर की चीजों से सुखी करना
चाहता था तो परास्त हो गया । जो इन्द्रियों को संयत करके अपने ‘स्वस्वरूप में
विश्रांति पाता है वह राम के रास्ते चलते हुए अमर पद को पा लेता है ।
सभी मनुष्यों का चित्त प्रेम और शांति का प्यासा है । जब
विषय-विकारों में प्रेम हो जाता है और उन्हें भोगने की रुचि होती है तो यह नजरिया
रावणवाला हो जाता है । जो अपने आत्मा-परमात्मा में विश्रांति पाते हैं और
चीज-वस्तु, सुविधा, व्यवस्था का सदुपयोग औरों को सत् में प्रवेश दिलाने के
निमित्त करते हैं वे राम के रास्ते चलते हैं पुत्र !
शिष्य : ‘‘तो दशहरा क्या
है ?
गुरुजी : ‘‘दस इन्द्रियों में रमण करते हुए मजा लेने के पीछे जो प‹डता है वह
रावण की नार्इं जीवन-संग्राम में हार जाता है और जो भगवान राम की नार्इं दसों इन्द्रियों
को सुनियंत्रित करके अपने अंतरात्मा में विश्रांति पा लेते हैं और दूसरों को भी
आत्मा के सुख की तरफ ले जाते हैं वे रामजी की तरह जीवन-संग्राम में विजयी हो जाते
हैं और आत्मराज्य में सदैव रमण करते रहते हैं ।
नवरात्रि के बाद अगला दिन दशहरा होता है । व्यक्ति पाँच
ज्ञानेन्द्रियों और चार अंतःकरणों का आकर्षण देवी माँ की भक्ति से संयत करे तो
विजयादशमी उसके पक्ष में हो जाती है । जिस अवस्था में शांति और सूझबूझ नहीं वह ‘नशा है । तो न
विजयादशमी को नशा करना है न नवरात्रि में नशा करना है अपितु अंतरात्मा में शांति पाना है । राम के मार्ग में जाना है, रावण के मार्ग
में नहीं जाना है । राम वे हैं जो विघ्न-बाधाओं, कष्टों में भी अपने
चित्त की समता व शांति बनाये रखते हैं तथा दूसरों के चित्त की सुरक्षा का खयाल
करते हैं ।
दशहरे का संदेश है कि दसों इन्द्रियों को कुमार्ग से
बचाकर नियंत्रित करके अपने अंतरात्मा का ज्ञान पाओ, सुख पाओ, जप करते हुए
परमात्मा में विश्रांति पाते जाओ ।
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