क्या अब "बारात" की कोई प्रासंगिगता है..??
प्रिय पाठकों/मित्रों, मैं
आप सभी के साथ एक विषय पर चर्चा करना चाहता हूँ। कृपया अपनी
प्रतिक्रिया/राय/प्रत्युत्तर दें।
"बारात"
क्या होती हैं ???
"बारात"
भारतीय उपमहाद्वीप में किसी शादी के दौरान दुल्हे के घर से दुल्हन के घर जाने वाले
लोगों के समूह को कहते हैं। इस क्षेत्र में अक्सर दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर अपने
सगे-सम्बन्धियों और दोस्तों की बरात लेकर विवाह-स्थल पर जाता है, जो
अक्सर दुल्हन का घर/मैरिज हाल/धंर्मशाला आदि होता है
अब प्रसंग–
अभी
कुछ दिन पहले निकट संबंधी के विवाह समारोह में बारात जाने का अवसर मिला। हम
१७०-१७५ बाराती २.५-३ घंटे का सफर तय करके लड़की वालों के यहाँ पहुंचे। बहुत ही
अच्छी व्यवस्था के साथ हमारा स्वागत सत्कार किया गया। सभी मेहमानो/बारातियों के
लिए गरम-ठंडा, नास्ता-पानी और भोजन की बहुत ही बढ़ीया व्यवस्था की गई थी। कुल मिला
कर लड़की वालों ने बारातियों के स्वागत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
अब दूसरा पहलु:—-
इस बारात में जितने भी लोगो से मैं मिला, सभी
को वापस जाने की जल्दी थी। ज्यादातर इसलिए आये थे ताकि वे अपने विवाह प्रसंग में
इनको बुला सकें। कुछ बाराती नास्ता करके बस में बैठ गए, ताकि
सीट मिल जाये। जिन्होंने खाना खाया, वो भी जल्दी में
थे। लगभग ४ घंटे बाद हम वापस आने के लिए रवाना हो गए। २.५-३ घंटे का सफर करके हम
आधी रात को दूल्हे के गांव पहुंच गए। जिनका घर नजदीक था वे जल्दी अपने घरों में
घुस गए, जिनका दूर था वो गलियों में भटकते हुवे…
खेर, मुद्दा ये है कि
जो बाराती बन कर गए उनकी प्रासंगिगता क्या है..??
बारात में जाकर हमने क्या किया..??
५-७ घंटे का बस
में सफर करके हम केवल चाय-पानी , नास्ता-खान आदि करके आये। न तो किसी से
मिल सेकें, न किसी से कोई जान पहचान कर सके। हाँ, हुड़दंग (DJ) करके
रायता जरूर फैलाया। आजकल रिश्तेदारी के नाम पर भी भागादोडी ही हो रही है और इसके
लिये कोई व्यर्थ महिनो परेशान हो रहा है मेहमान बेमन के आ रहे है और मेजबान मजबूरी
में बुला रहे है प्यार और उल्लास गायब हो रहा है
इस पूरे ताम-झाम के लिए
लड़की वालों को महीनों लगे होंगे। कितनी ही रातों की नींद उड़ी होगी। केवल एक वक्त
के भोजन समारंभ के लिए। सबसे बड़ी बात तो ये है कि बारात जाने वाला एक भी व्यक्ति
आनंदित नहीं था। सब फसे हुवे से मालूम पड़ते थे। मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ की
क्या अब "बारात" की कोई प्रासंगिगता है..?? क्या हमें अब
कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं अपना लेनी चाहिए..??
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अब एक अन्य विशेष पहलु पर भी नजर—
बड़े शहरों में ही नहीं कस्बों में भी अब तो
बारात के कारण घंटों-घंटों जाम में लोग फंस जाते हैं। बढ़ते वाहनों का अम्बार, साइकिल
व ऑटो रिक्शा की रेलमपेल, अतिक्रमण के चलते सिकुड़ती सड़कें, बेतरतीब
चौराहे और ऊपर से बारातियों का बीच सड़क पर घेरा डालकर कई-कई देर तक डांस करना राहगीरों
की मुसीबत बन जाता है।
वाहनों की कतारों के बीच खतरनाक
आतिशबाजी देखकर तो कई बार दिल दहल उठता है। कहीं कोई हादसा हो गया तो बच कर निकलने
की कोई जगह नहीं। इन हालात से बेपरवाह बारातियों को निश्चिन्त होकर मनोरंजन में
मशगूल देखकर बड़ी पीड़ा होती है। आखिर कहां गया हमारा नागरिक दायित्व-बोध? बारात
के कारण जाम में फंसे लोगों में कोई गंभीर मरीज भी हो सकता है, जिसे
तत्काल चिकित्सा की जरूरत है। गत दिनों ऐसे ही एक जाम में एम्बुलेंस के फंसने से
मरीज की मौत हो चुकी है। हालांकि कुछ जगह बारातियों को भी व्यवस्था बनाते देखा
जाता है, लेकिन ज्यादातर ऐसा देखने में नहीं आता और राह से गुजरने वाले परेशान
होते रहते हैं। ऐसे लापरवाह लोगों के लिए तो यातायात पुलिस और स्थानीय प्रशासन की
खास तौर पर जरूरत महसूस होती है।
किसी बड़े आदमी के यहां
विवाह-समारोह हो तो पुलिस वालों की लाइन लग जाती है व्यवस्थाएं बनाने में। लेकिन
आम विवाह-समारोह में बीच सड़क पर यातायात में खलल डालते समय पुलिस का कोई परिन्दा
भी नजर नहीं आता। दूरस्थ कॉलोनियों का तो भगवान ही मालिक है। एक ही मुख्य सड़क पर
कई 'मैरिज गार्डन्स' और आमने-सामने गुजरती बारातों की ऐसी
चिल्ल-पों मचती है कि बेचारे राहगीरों का 'बाजा' बज
जाता है। माना शहर की ट्रैफिक व्यवस्था केवल बारातों की वजह से नहीं बिगड़ती।
यातायात पुलिस और स्थानीय निगमों की कुव्यवस्थाएं इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं।
'पीक
ऑवर्स' में तो रोजाना जाम के हालात बनते हैं। ऐसे में 'बारातियों' को
कोसना ठीक नहीं। विवाह एक उत्कृष्ट सामाजिक संस्कार है जिसे समारोहपूर्वक मनाने का
सबको हक है। इसके बावजूद हमारा दायित्व है कि हम सड़क पर बारात के दौरान कुछ चीजों
का ध्यान रखकर राहगीरों की राह आसान बना सकते हैं और विवाह-समारोह का भी भरपूर
आनन्द ले सकते हैं।
आमतौर
पर शादियों में देखा जाता है कि लड़की वाले दरवाजे पर खड़े घंटों तक बारात का
इंतजार करते रहते हैं। लेकिन बारात नाचने, गाने और
आतिशबाजी में ही मस्त रहती है। शादी के कार्ड पर तो स्वागत बारात 8 या
9 बजे छपवा दिया जाता है, लेकिन बारात 11
बजे से पहले पंडाल में प्रवेश ही नहीं करती है। ये नजारा आपको हर कहीं देखने को
मिल जाएगा।
बारात का प्रतीक्षा करते-करते दुल्हन का मेकअप
फीका पड़ने लगता है, खाना ठंडा होने लगता है, लड़की वाले
दरवाजे पर हाथ जोड़े खड़े रहते हैं।
जरा सोचिये ..???
क्या सचमुच में प्रासंगिकता हैं
"बारात" की…
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