१२३ फीट ऊंचाई वाली शिवजीकी प्रतिमा - रामायण काल से जुड़ा है इतिहास!
                         उत्तर कन्नड़ (कर्नाटक) : अभी शिवजी का प्रिय सावन माह चल रहा है और इसी वजह से देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की काफी अधिक भीड़ लगी हुई है। शिवजी के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका संबंध पौराणिक पात्रों से भी है। शिवजी के एक ऐसे क्षेत्र के विषय में, जिसका संबंध रामायण काल से है। इस क्षेत्र में शिवजी की विशाल प्रतिमा स्थित है, जिसकी ऊंचाई करीब 123 फीट है। यह प्रतिमा मुरुदेश्वर मंदिर में स्थित है।
                        कथाओं के अनुसार रामायण काल में रावण जब शिवजी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण को एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है। इस आत्मलिंग के संबंध में शिवजी ने रावण से कहा था कि इस आत्मलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस स्थान पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा। अत: यदि तुम अमर होना चाहते हो तो इस लिंग को लंका ले जा कर स्थापित करना। रावण इस आत्मलिंग को लेकर चल दिया। सभी देवता यह नहीं चाहते थे कि रावण अमर हो जाए इसलिए भगवान विष्णु ने अपनी तीक्षण बुध्दि का ईस्तेमाल करते हुए वह शिवलिंग रास्ते में ही रखवा दिया।
                      जब रावण को पता चला तो वह क्रोधित हो गया और इस आत्मलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया। तभी इस लिंग पर ढंका हुआ एक वस्त्र उड़कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया था। इसी दिव्य वस्त्र के कारण यह तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा है। भारत के दक्षिण भाग में स्थित कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिला है, इस जिले की भटकल तहसील में ही मुरुदेश्वर मंदिर स्थित है। यह मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है। समुद्र तट होने की वजह से यहां का प्राकृतिक वातावरण तुरंत ही यहां आने वाले लोगों का मन मोह लेता है।
                      यह स्थान मेंगलोर से करीब 165 किमी दूर स्थित है। यहां आने-जाने के लिए आवागमन के उचित साधन मिल जाते हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसके तीन ओर अरब सागर है। मंदिर में भगवान शिव का आत्मलिंग भी स्थापित है। इस क्षेत्र में विशाल मंदिर बना हुआ है। इसके मुख्य द्वार पर सजीव हाथी के बराबर दो हाथियों की मूर्तियाँ बनाई गई है। मुरुदेश्वर मंदिर में स्थित शिवजी की विशाल मूर्ति दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति को इस ढंग से बनवाया गया है कि इस पर दिनभर सूर्य की किरणें पड़ती रहती हैं और यह चमकती रहती है।