नोबल पीस प्राइज के लालच
में हिन्दुओ का बहुत अहित कर रहे है कथित धर्मगुरु रविशंकर।
राम मंदिर मामले में मध्यस्थता करने
आए "बिन बुलाए मेहमान" श्री-श्री साहब की बौद्धिक संरचना पर यह लेख पढ़िए।
थोड़ा लंबा जरूर है, लेकिन पढ़िए जरूर।।। जब मैं असम में था तब वहां के एक सूदूर गाँव
में जाना हुआ। गाँव में अधिसंख्यक आबादी बांग्लादेशी घुसपैठियों की थी। वहां के एक
छोटे से मोबाइल रिचार्ज दुकान में रिचार्ज करवाने गया तो देखा कि वहां छः-सात युवा
कंप्यूटर पर एक बांग्लादेशी मौलाना की तक़रीर सुन रहे थे। तक़रीर में वो मौलाना जो बोल
रहा था उसके बोल कुछ यूं थे,
"दूसरे धर्म का कोई कैसा भी पंडित
क्यों न हो हमारे ज़ाकिर नाइक के सामने नहीं टिक सकता। आपलोगों ने कुछ दिन पहले इंडिया
से आई एक विडियो देखी होगी जिसमें हिन्दू धर्म के सबसे बड़े विद्वान् श्रीश्री रविशंकर
को हमारे ज़ाकिर नाइक ने उठा-उठा के पटका। आप विश्वास नहीं करेंगें, जाकिर सवाल पूछते
जा रहे थे और वो रविशंकर आएँ-बाएँ-साएँ बके जा रहा था। यहाँ तक कि ज़ाकिर की तक़रीर खत्म
होने के बाद झुण्ड के झुण्ड लोग अल्लाह के दीन में शामिल होने आगे गये। उस दिन फिर
से हक़ (इस्लाम) बातिल (हिन्दू धर्म) पर ग़ालिब आया"।
इस विडियो को देखने के बाद उनके चेहरे
खिले हुये थे। मैंने उन लड़कों से पूछा, तुमलोग जानते हो ज़ाकिर नाइक कौन है तो उनमें
एक भी नहीं था जिसने इंकार में सर हिलाया हो। ये बात आपको मैं असम के नगांव जिले के
एक सूदूर गाँव की बता रहा हूँ तो आप कल्पना कर सकतें हैं कि ज़ाकिर नाइक की पहुँच कहाँ
तक है।
हमारे धर्म के एक NGO चलाने वाले मॉडर्न
बाबा को गुजरात दंगों के दौरान सेकुलर सर्वधर्म सम्भावी कीड़े ने काटा, बड़ी तकलीफ हुई
कि इस मुल्क के अमन में ये साम्प्रदायिकता का जहर कैसे घुल सकता है और मुल्क के सेकुलर
ताने-बाने को बचाने की कोशिश करते हुये उसने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने के लिये
एक किताब लिखने का इरादा बाँधा। कहने की जरूरत नहीं है कि जिस इन्सान ने न तो हिन्दू
धर्म को पढ़ा हो और न इस्लाम को उसकी जहालत से निकली किताब कैसी रही होगी। कुछ पीं०
एनo ओक की किताब से चुराया और कुछ गूगल से उठाया और लिख डाली किताब फिर खुद को अमन
का राजकुमार होने का भ्रम पालने लगा और इसी भ्रम में एक दिन उसने "इस्लामिक रिसर्च
फाउंडेशन" को आमन्त्रण दिया कि क्यों न मैं और आपके मुखिया ज़ाकिर नाइक एक बड़ी
भीड़ को संबोधित करें और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयासों को गति दें।
कहने की जरूरत नहीं है कि इस मूढ़ मति
के छल्ले को ये पता नहीं था कि ये जिसको आमन्त्रण देने जा रहा है वो इसकी तरह न तो
ज़ाहिल है और न ही महामूर्ख। "इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन" ने देखा कि जब जाहिल
बकरा खुद ही हलाल होने आ रहा है तो क्यों न उसकी बोटियाँ, चर्बी और हड्डी बांटने का
पूरा इंतजाम किया जाये। इसलिये उन्होंनें फ़ौरन सारे इंतज़ामात किये और इस मूढ़मति को
आमंत्रित किया।
21 जून, 2006 को हमारे लिये कलंक दिवस
के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिये क्योंकि उस दिन बंगलौर के एक मंच पर जाकिर और
ये मूढ़मति बैठे। डिबेट का विषय था "Concept of GOD in Islam and
Hinduism"। ज़ाकिर नाइक ने अपने स्वभाव के अनुसार वेदों, गीता, पुराणों और उपनिषदों
से सन्दर्भों की झड़ी लगा दी। कहा कि अंतिम अवतार जिसे आप कल्कि मानते हो वो हमारे नबी
के रूप में हो चुके हैं और इसका वर्णन आपकी किताबों में भी है। इसके लिये भी ज़ाकिर
ने हमारी ही किताबों से दलीलों का अंबार लगा दिया। अब सामने बैठी पचास हज़ार की भीड़
और टीवी पर लाइव देख रहे करोड़ों लोग सांस थामे इस इंतज़ार में थे कि ज़ाकिर के इन दावों
पर ये क्या जबाब देतें हैं। ये उठे, अपना पल्लू संभाला और मंच पर जाकर कहने लगे,
"मुझे ताअज्जुब है कि इनके पास इतना इल्म कैसे है और इनकी मेमोरी इतनी जबर्दस्त
कैसे है"।
इस मूढमति के छल्ले से ज़ाकिर के किसी
भी सवाल का जबाब देते नहीं बना। न ही ये कुरान से एक आयत भी बोल सका और खींसे निपोरते
हुये कबीर के प्रेम वाले दोहे पढ़ने लगा। ज़ाकिर इतने पर भी कहाँ पसीजने वाला था, उसके
बाद उसने इसकी लिखी उस कूड़ा किताब का पोस्टमार्टम शुरू कर दिया जिसमें इसकी मूर्खता
और कमअक्ली के तमाम सबूत थे। ज़ाकिर ने इसके किताब की एक-एक पेज खोली और इसे नंगा कर
दिया। जब इसकी बारी आई तो इसने फिर दांत निकालते हुये कहा, "दिस बुक वाज रिटेन
इन हरी" यानि इसे मैंने जल्दबाजी में लिखा था इसलिये इसमें गलतियाँ हैं पर जाकिर
नाइक को समझना होगा कि मेरी मंशा पवित्र थी और मैं इस किताब के जरिये से हिन्दू और
मुसलमानों को एक साथ लाना चाहता था।
इसे बोलने के लिये पचास मिनट का समय
दिया गया था और ये बमुश्किल 35 मिनट ही बोल पाया। जब कार्यक्रम खत्म हुआ तो वहाँ एक
अजीब शोर बरपा था। इस मूढमति ने सनातन को शर्मसार कर दिया था और वहां ज़ाकिर के लोग
विजय का जश्न मना रहे थे। IRF ने उस कार्यक्रम की संभवतः लाखों सीडियाँ बनवाई, उस विडियो
को youtube से लेकर सारे इन्टरनेट पर फैला दिया और दुनिया उस मजमे में हिंदुत्व की
पराजय का दृश्य देखती रही। जाकिर ने न जाने किस-किस तरीके से इस विजय को कैश किया और
मतान्तरण की फसल काटी। दावतियों को नया हौसला मिला कि अब सब कुछ संभव है।
आप कहते रहिये कि हमारे वो गुरूजी
हिन्दूधर्म के प्रतिनिधि नहीं है तो वो ऐसे हैं वैसे हैं पर ज़ाकिर और IRF उसे हिंदुत्व
पर इस्लाम के विजय रूप में ही चिन्हित करती है। दुनिया के लाखों हिन्दू जिनमें आपकी
तरह कूटनीति समझने और समझाने लायक बुद्धि नहीं है (आपके अनुसार) वो अपने धर्म पर शर्मिंदा
होतें हैं उस विडियो को देखकर और उधर असम के सूदूर गाँव तक में बैठे उन लड़कों को ज़ाकिर
ये हौसला देता है कि तुम बौद्धिक युद्ध में भी इनसे कम हो क्या? देखो, कैसे हमारे नाइक
ने हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पंडित को सारी दुनिया के सामने नंगा कर दिया।
अब कोई मुझे ये समझाए कि :-
1। आपको न तो अपने धर्म का इल्म है और न ही उनके
तो आप किस हैसियत से इन विषयों पर डिबेट करने जातें हैं?
2। आप अपने NGO के प्रतिनिधि बनकर कुछ भी करते
रहें कोई हर्ज़ नहीं पर हिन्दू धर्म का प्रतिनिधि आप किस हैसियत से बन जातें हैं?
3। सेकुलर कीड़ा एकतरफ़ा आपको ही क्यों काटता है?
4। आपकी समझदानी भेड़ और भेड़िये में फ़र्क क्यों
नहीं कर पाती? और अंतिम सवाल केवल उस मूढमति के छल्ले "डबल श्री" से है कि
एक बार नंगा होकर मन नहीं भरा जो बार-बार अपनी नथ उतराई करने आगे आ जाते हो?
अब क्या हमारे दिन इतने खराब आ गयें
हैं कि नाक कटवाने वाले को हम अपने नाक और अस्मिता की लड़ाई सौंप दे?दलाली बंद करो,
अपने साबुन-सर्फ़, मूंग दाल, ब्रश-पेस्ट बेचो वरना नंगा करना अकेले ज़ाकिर को ही थोड़े
आता है।।। भाई Abhijeet Singh की धधकती कलम से निकला लेख।।।
ये वही श्रीश्री रविशंकर हैं जो बुरहान
वानी जैसे आतंकी के बाप को सांत्वना देने जाते हैं लेकिन किसी सैनिक के मौत पर मौन
हो जाते हैं। ये वही श्रीश्री रविशंकर हैं जो इराक सिरिया में मुल्लों के मारे जाने
पर शांति करवाने जाते हैं लेकिन कश्मीर, केरल में हिंदुओं की हत्या पर इन्हे सांप सूंघ
जाता है। इनका नाम श्रीश्री रविशंकर के बजाय , छि: छि: रवि-कंकर होना चाहिए । जय श्री
राम
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