श्राद्ध-महिमा
एवं पितरों को तृप्त व प्रसन्न करने के उपाय
श्रद्धया दीयते यत्र तच्छ्राद्धं
परिचक्षते ।
‘श्रद्धा
से जो पूर्वजों के लिए किया जाता है, उसे
‘श्राद्ध’ कहते
हैं ।’
‘पद्म
पुराण’ में आता है : ‘श्राद्ध
से प्रसन्न हुए पितर आयु, पुत्र, धन, विद्या, राज्य, लौकिक
सुख, स्वर्ग तथा मोक्ष भी प्रदान करते हैं ।’
अमावस्या को श्राद्ध की महिमा
‘वराह
पुराण’ के अनुसार एक बार पितरों ने ब्रह्माजी के चरणों
में निवेदन किया : ‘‘भगवन् ! हमें जीविका देने की कृपा
कीजिये, जिससे हम सुख प्राप्त कर सकें ।’’
प्रसन्न
होते हुए भगवान ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा : ‘‘अमावस्या
की तिथि को मनुष्य जल, तिल और कुश से तुम्हारा तर्पण करेंगे ।
इससे तुम परम तृप्त हो जाओगे । पितरों के प्रति श्रद्धा रखनेवाला जो पुरुष
तुम्हारी उपासना करेगा, उस पर अत्यंत संतुष्ट होकर यथाशीघ्र वर
देना तुम्हारा परम कर्तव्य है ।’’
यद्यपि
प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है तथापि आश्विन मास की अमावस्या पितरों के
लिए परम फलदायी है । जिन पितरों की शरीर छूटने की तिथि याद नहीं हो, उनके
निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान
आदि इसी अमावस्या को किया जाता है ।
अमावस्या
के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिंडदान एवं श्राद्धादि की आशा में आते हैं
। यदि वहाँ उन्हें पिंडदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलते हैं तो वे शाप देकर चले
जाते हैं । अतः श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।
पितरों
की संतुष्टि हेतु श्राद्ध-विधि में करणीय
*
‘पद्म पुराण’ के
सृष्टि खंड में पुलस्त्य ऋषि भीष्मजी को कहते हैं : पितृकार्य में दक्षिण दिशा
उत्तम मानी गयी है । यज्ञोपवीत (जनेऊ) को अपसव्य अर्थात् दाहिने कंधे पर करके किया
हुआ तर्पण, तिलदान तथा ‘स्वधा’ शब्द
के उच्चारणपूर्वक किया हुआ श्राद्ध - ये सदा पितरों को तृप्त करते हैं ।
*
चाँदी के बने हुए या चाँदी-मिश्रित पात्र में जल रखकर पितरों को श्रद्धापूर्वक
अर्पित किया जाय तो वह अक्षय हो जाता है । चाँदी न हो तो चाँदी की चर्चा सुनकर भी
पितर प्रसन्न हो जाते हैं । चाँदी का दर्शन उन्हें प्रिय है ।
*
पितरों का उद्धारक तथा राज्य व आयु बढ़ानेवाला मंत्र :
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।
‘देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा
और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है, नमस्कार
है ।’(अग्नि पुराण : 117.22) श्राद्ध
के प्रारम्भ, समाप्ति तथा पिंडदान के समय इस मंत्र
का समाहित (सावधान) चित्त होकर 3-3 बार पाठ करने से पितृगण शीघ्र ही वहाँ आ जाते
हैं और राक्षसगण तुरंत वहाँ से पलायन कर जाते हैं । यह वीर्य, पवित्रता, सात्त्विक
बल, धन-वैभव, दीर्घायु, बल
आदि को बढ़ानेवाला मंत्र है ।
*
‘पद्म पुराण’ में
आता है कि ‘जो भक्तिभाव से पितरों को प्रसन्न करता
है, उसे पितर भी संतुष्ट करते हैं । वे पुष्टि, आरोग्य, संतान
एवं स्वर्ग प्रदान करते हैं । पितृकार्य देवकार्य से भी बढ़कर है अतः देवताओं को
तृप्त करने से पहले पितरों को ही संतुष्ट करना श्रेष्ठ माना गया है ।’
पूज्य
बापूजी कहते हैं : ‘‘श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया-पैसा
नहीं है तो श्राद्ध के दिन 11.36 से 12.24 बजे के बीच के समय (कुतप वेला) में गाय
को चारा खिला दें । चारा खरीदने का भी पैसा नहीं है, ऐसी
कोई समस्या है तो उस समय दोनों भुजाएँ ऊँची कर लें, आँखें
बंद करके सूर्यनारायण का ध्यान करें : ‘हमारे
पिता को, दादा को, फलाने
को आप तृप्त करें, उन्हें आप सुख दें, आप समर्थ
हैं । मेरे पास धन नहीं है, सामग्री नहीं है, विधि
का ज्ञान नहीं है, घर में कोई करने-करानेवाला नहीं है, मैं
असमर्थ हूँ लेकिन आपके लिए मेरा सद्भाव है, श्रद्धा
है । इससे भी आप तृप्त हो सकते हैं ।’ इससे
आपको मंगलमय लाभ होगा ।’’
(श्राद्ध
से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘श्राद्ध-महिमा’ ।)
‘सामूहिक
श्राद्ध’ का लाभ लें
सर्वपित्री
दर्श अमावस्या (19 सितम्बर 2017) के दिन विभिन्न स्थानों के संत श्री आशारामजी
आश्रमों में ‘सामूहिक श्राद्ध’ का
आयोजन होता है । आप भी इसका लाभ ले सकते हैं । इस हेतु अपने नजदीकी आश्रम में 12
सितम्बर तक पंजीकरण करा लें । अधिक जानकारी हेतु पहले ही अपने नजदीकी आश्रम से
सम्पर्क कर लें ।
अगर खर्चे की परवाह न हो तो अपने घर
में भी श्राद्ध करा सकते हैं ।
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