राजा बलि।

                     वो लोग धनभागी है , जिनके कानो मे सत्संग की कथा आती हैजो मनुष्य भगवत कथा से वंचित है वो मनुष्य है ही नही! वो तो पशु है!! क्यो कि पशु भी दुःख मे दुखी और सुख मे सुखी होता हैखाता पिता और बच्चे पैदा करता हैपशु नही समझ सकता कि आत्मा क्या हैईश्वर क्या हैपशु मे क्षमता नही होती समझने की.ऐसे जिस मनुष्य को ये पता नही कि ईश्वर क्या है , आत्मा क्या हैतो वो मनुष्य नही पशु है
                     राजा परीक्षित शुकदेव जी महाराज का आराध्य-पाद पूजन करते , उनको सोने के सिंहासन पे बिठाते और स्वयम उनके चरणों मे बैठ के गुरुकृपा का लाभ लेतेराजा ऐहिक सुविधा दे सकता है लेकिन आत्मा का सुख पाने के लिए उनको भी संतो के चरणों मे ही आश्रय लेना पड़ता है इसलिए संतो का स्थान राजा से ऊँचा रखते हैसारे भौतिक सुख जिनके पास होते है ऐसे देवाताओंके राजा इन्द्र भी आत्मसुख पाए संत के आगे स्वयम को बौना मानता हैऐसा संत के सत्संग का महिमा हैआप लोगो को ३ दिन हरि कीर्तन का लाभ मिला , सज्जनता का व्यवहार हुआ ज्ञान का प्रकाश पायाऐसा सत्संग प्रसंग जीवन मे आना ईश्वर कि कृपा से ही संभव हैकोई पुण्य जोर करता है तभी सत्संग का लाभ होता हैजो अभागे है , पापी है , जिनके पुण्य नाश हो गए है उनको सत्संग नही मिल सकता , कोई ले आये तो भी वो बैठ नही सकतासत्संग ऐसी चीज हैएक शराबी का नाम जानते है आप सभी लोगजो हिन्दू है वो तो जरुर जानते है , व्यवहार मे बोलते भी है सत्संग से उसको क्या लाभ हुआ इसकी कथा सुनो
मनुष्य जनम की विशेषता
                      उस शराबी का जनम-दिन था , तो वो अपना जनम-दिन वेश्या के साथ मनाने जा रहा थाहाथ मे चांदी की थाली थी , जिसमे स्वस्तिक बना हुआ था, कुछ मिठाई फल आदि थातो रस्ते मे एक खँडहर के पास धरती मे पुरानी कुटीर का जमीन मे गड़ा हुआ अवशेष था , उससे टकराके शराबी गिर पड़ा वो कुटीर किसी ब्रह्मज्ञानी संत महापुरुष की थी जहा सत्संग चलता रहता थाऐसी जगह शराबी गिर पड़ा और बेहोश हो गयातो उस धरती पर पड़े रहने से उसे ऐसा लाभ हुआ कि जब होश मे आया तो उसके विचार बदल गए थेजनम-दिन को वेश्या के पास नही गया, चांदी की थाली और फल मिठाई आदि दान कर दिए नशे मे गिर पड़ा और उस पावन धरती पे श्वासोस्वास अन्दर गए तो गहरा प्रभाव पड़ासमय पाकर १०/१५ साल मे उसकी मौत हुयी तो यमराज के पास उसका लेखा जोखा देखा गया
                     चोरासी लाख योनिया बदलती तो सिर्फ मनुष्य जनम के बाद लेखा जोखा पढ़ते हैक्यो कि मनुष्य मे ही इतनी समझ दी है ईश्वर ने इसलिए आत्म तत्व को जानो , जप करो ध्यान करोमनुष्य कर्म करने मे स्वतंत्र है लेकिन कर्मो के फल भोगने मे स्वतंत्र नही हैदूसरे जीवो मे ऐसा नही हैदेवताओंको भी सुख भोगने कि स्वतंत्रता है , लेकिन सुख भोगकर पुण्य खतम होते ही स्वर्ग से धरती पर गिराए जातेमनुष्य जन्म ही केवल ऐसा है कि ब्रह्मज्ञान पाकर परम पद को पाने मे सक्षम हैकभी पाप के बल से दुःख आता तो कभी सुख और ममता छुडाने के लिए भी ईश्वर अपना हीत करने के लिए दुःख देते है , इसलिए दुःख आए तो ऐसा नही समझना की पाप का फल मिला है
सत्संग की धरती पर बेहोशी से इन्द्रपद की प्राप्ति
                      तो महाराज सव्वा मुहूर्त सच्चे ब्रह्मज्ञानी के कुटीर की धरती पर सत्संग की जगह पड़े रहने से उस शराबी को सव्वा मुहूर्त इन्द्र पद का राज्य भोगने को मिलेगा और बाकी का हजारों साल का नरकवास था तो यमराज ने पूछा कि, “ पहले क्या भोगना चाहते हो?”
                      ऐसा पूछा जाता हैतो शराबी ने सोचा कि हजारों साल इंतझार करो फिर इन्द्रपद भोगोइससे अच्छा पहले इन्द्रपद भोगना ठीक हैएक बात ध्यान देना कि पृथ्वी का एक साल बीतता तब तक स्वर्ग का एक दिन होता हैतो सव्वा मुहूर्त लगभग अपने साल का १४ वा हिस्सा समझ लोतो इतना समय इन्द्र पद मिला तो इसमे क्या राज्य करना और क्या मौज करनासव्वा मुहूर्त ब्रह्मज्ञानी के सत्संग की जगह पर पड़े रहने से इतना लाभ हुआ तो वोही करते है सोच कर शराबी ने वशिष्ट महाराज को इन्द्र दरबार मे आमंत्रित कियामनुष्य पशु पक्षी की बोली समझता, बोलतास्वर्ग मे जिसका चिंतन करते वो प्रगट हो जाते , स्वर्ग मे मंत्र काम करते यहा पृथ्वी पे यंत्र काम करतेपहले ऐसा भी था कि मनुष्य पशु पक्षियों की बोली भी समझ सकते , बोल सकते थे लेकिन उस प्रकार का खान पान नही रहा तो वो नाडिया बंद हो गयीरामकृष्ण परमहंस समझ सकते थे कुत्ता क्या बोलता , गाय क्या बोलती पक्षी क्या बोलते तो वो नाडिया खुलती तो पशु पक्षी की बोली भी समझ सकते है तो ये शराबी ने इन्द्र पद पाकर वशिष्ठ महाराज का चिंतन किया वशिष्ठ महाराज प्रगट हो गएउनका पूजन किया , स्वर्ग की कामधेनु देकर सत्कार किया विश्वामित्र का आवाहन किया , पूजन किया उन्हें स्वर्ग का मणि दियाइसप्रकार जो भी कुछ विशेष था उसका उपयोग करना शुरू कर दिया, उपभोग नही किया
उपयोग करो , उपभोग नही
                     ऐसे ही हम अपने को जो ईश्वर से ग्यानेंद्रिया और कर्मेंद्रियोका ऐश्वर्य मिला है उसका उपयोग नही करते और उपभोग करना शुरू कर देते तो बीमार होंगे , विकलांग संतान पैदा होती, होली, दीवाली, शिवरात्रि और जन्माष्टमी ये चार महारात्री है जो इस पावन काल मे पति पत्नी का संसार व्यवहार करता तो घोर पाप लगता हैअभी दीवाली आ रही है , उस रात जप ध्यान करो और अपना ऐहिक के साथ पारमार्थिक ऐश्वर्य बढाओतो कथा मे आता है कि , इन्द्र बोला, “महाराज ये तो सव्वा मुहूर्त मे सारा स्वर्ग का वैभव नष्ट कर रहा हैकिसी को मणि दे रहा , तो किसी को कामधेनु दे रहा तो किसी को कुछ तो ब्रह्माजी बोले कि, “नही, इसको तो सव्वा मुहूर्त इन्द्र पद मिला फिर भी वो स्वर्ग के भोगो मे नही फ़सा , उतने समय मे भी ब्रह्मज्ञानी महात्माओंका संग करके स्वर्ग के वैभव का सदुपयोग किया , इसलिए उसका नरकवास का दंड माफ किया और उस शराबी को बोला कि , “तुमने इस सव्वा मुहूर्त का जो उपयोग किया उस पुण्य के प्रभाव से तुम्हे वापस मनुष्य शरीर मिलेगा लेकिन दैत्य कुल मे तुम्हारा जनम होगा। । तो शराबी बोला कि , “हे प्रभु , पृथ्वी का सव्वा मुहूर्त सत्संग कि जगह बेहोशी मे पड़े रहने से मुझे स्वर्ग का सव्वा मुहूर्त का इतना ऊँचा इन्द्रपद मिला और फिर से मनुष्य जनम भी मिल रहा है ! तो हे दाता !,  इतना करना कि मेरी ये स्मृति उस जनम मे बनी रहेतो दैत्य कुल मे भी जनम लेकर मैं अपने मनुष्य जीवन का सार्थक करू इतना कीजिए महाराज!” भगवान बोले, “बाढम बाढम(बढिया बढिया!) तुम्हारी मांग सुन्दर है!”
                  तो वोही शराबी दैत्यकुल मे जन्मा और इतने सत्कर्म किया कि आज भी उसका नाम हम सब के जबान पर आता रहता है उसका नाम था राजा बलि!!” आज भी कोई अच्छा काम कर देता है तो हम कहते बलिदानकिया सैनिक देश पे न्योछावर होते तो बलिदानकियाकोई किसी के लिए परोपकार करता तो कहा जाता है कि , उसने अपने सुखो का बलिदान दियातो सत्कर्मो से आज भी बलिका नाम जुड़ जाता हैजो भोग का भोगी नही बनते , ईश्वर से मिले ऐश्वर्य का सदुपयोग करते तो पुण्य हो जाता हैइसलिए आप के पास जो कुछ भी है ईश्वर का दिया हुआ , उसका सदुपयोग करोआप जिस भी स्थिति मे हो जितना भी पाते हो , जो भी नोकरी करते होउसी में से दूसरो के लिए अच्छा करे नयी स्थिति आने का वेट मत करनाये मिलेगा तो करू ऐसा नही सोचे , जो जिस स्थिति मे है और जो कुछ दूसरो के लिए अच्छा कर सकता है करेऔर सिर्फ पति पत्नी बेटे बेटी के लिए नही , वाहवाही के लिए नही भगवान कि सेवा के लिए करोअपने अधिकार की रक्षा करते हुए दूसरो का हीत करना दूसरो को सुख देना दूसरो को मान देनामान तो देने कि चीज हैसुख भोगने कि नही , देने कि चीज है! सत्कर्म किया और खुद की इज्जत बढ़ाने के लिए किया मैं-पनाबढ़ाने के लिए किया तो इतना लाभ नही होताआप दूसरो के हीत के लिए करते तो आप का हीत स्वाभाविक हो जाता है
उलटी समझ
                      आजकल उलटी समझ हो गयी हैअपने अधिकार की रक्षा करना मतलब दूसरो को कर्तव्य सिखाना नहीपति पत्नी को कर्तव्य सिखाता अपनी भोग लालसा के लिएपत्नी पति को गहने लाने का कर्त्यव्य दिखाती , बेटा का ये कर्तव्य दिखाते माँ बाप की सेवा है , बेटी का ये कर्तव्य है बहु का ऐसादूसरो को कर्तव्य सिखायेगाअपने स्वार्थ को देखेगा!अपने अधिकार की रक्षा करने का अर्थ है कि , अपना कर्तव्य पहले करोअगर आप ने अपना कर्तव्य किया है तो आप का अधिकार आप को जरुर स्वाभाविक मिल जाता हैअपने कर्त्यव्य किये नही तो परिणाम भी नही मिलते
- टिचर का कर्तव्य है कि विद्यार्थी को ज्ञान दे
- डाक्टर का कर्तव्य है कि उसके ज्ञान से मरीज की बीमारी दूर करे
- पहेलवान का कर्तव्य है की दुर्बल व्यक्ति की रक्षा करे
- संत का कर्तव्य है कि समाज के लिए सुखद वातावरण करे
.ये पक्का कर लो कि आप के पास जो कुछ भी है उसका सब के लिए उपयोग करेतो उसका सदुपयोग हो जाएगा.संसार की कोई
सुविधा आती है तो वो चली भी जाती हैतो ये आने जाने वाले के पहले जो है उसका उपयोग कर लो
 है भी सत् , जुगातित भी सत् , होसे भी सत् l
नानक जी कहते है , आदि सत् युगों से पहले था , अब भी है और बाद मे भी रहेगा
देनेवाले दाता को ही दान दिया!
                      बलि राजा की कथा मे आगे आता कि बलि राजा ने सदुपयोग का मार्ग पकडा तो उनका पुण्य प्रभाव बढ़ा दैत्य कुल मे होते हुए भी पहली स्मृति से सत्कर्म करता रहासत्संग, दान पुण्य बढ़ता रहातो स्वाभाविक ही उसका प्रभाव वैभव बढ़ता रहा लेकिन उसके इर्द-गिर्द जो दैत्य /राक्षस थे , वो घमंडी हो गए और देवताओंको सताने लगेतो जैसे रावन और कंस से बचाकर शांति करने के लिए प्रभु आये वैसे राजा बलि तो दुष्ट नही , मारने योग्य नही थाराजा बलि ने तो बहोत ऊँचा स्थान पा लिया हैतो प्रभु बोले मैं उसके सामने बौना होकर जाऊंगाबलि को पता नही था कि साक्षात् विष्णु भगवान वामन स्वरूप मे आये हैबौने ब्राह्मण के रुप मे आये वामन स्वरुप विष्णु भगवान को बलि राजा बोला कि, “३ पैर(कदम) पृथ्वी का क्या करोगे ब्राह्मण कुछ और मांग लो
                     ब्राह्मण रूप मे भगवान बोले कि, “मुझे पता है , एक बार बलि से जो मांगता है उसे जीवन भर कही और मांगना नही पड़तालेकिन मुझे तो ३ कदम पृथ्वी ही देना दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने ब्राह्मण रूप मे आये भगवान को पहेचान लिया और बलि को सावधान किया कि इनको दान नही देनालेकिन राजा बलि ने कहा कि, “दाता मेरे द्वार मांगने आया  देनेवाले दाताको दान देकर मेरा तो जीवन सार्थक हो गया!” वामन रुप से विराट रुप लेकर विष्णु जी पहले कदम मे पृथ्वी दूसरे कदम मे आकाश ले लिया और तीसरा कदम कहा रखू पूछा तो राजा बलि ने हाथ जोड़कर अपना शीश आगे कियाविष्णु भगवान ने बलि राजा के पत्नी को पूछा तो राजा बलि की पत्नी भी बोली कि, “मेरा जीवन ऐसे पति को पाकर धन्य हो गया कि , जो देनेवाले को दान दे रहा हैमैं प्रणाम करती हूँ!” पत्नी का कर्तव्य है अच्छे काम मे पति का साथ दे  राजा बलि के माता पिता भी बोले , “ हमारे कुल मे ऐसा दीपक आया तो हम धन्य हो गए ! ब्रह्मज्ञानी के कुटीर मे गडे पत्थर से टकराकर सत्संग की धरती पर सव्वा मुहूर्त बेहोश पड़े रहने से शराबी से ऐसा दानी बलि राजा हुआ !
दान लेना नही , देना सीखो
                     कथा आगे चलती है कि दान लेना तो आसान होता है लेकिन दान लेने वाले को दान देनेवाले का बदला चुकाना ही पड़ता हैचाहे इसी जनम मे या दूसरे जनम मे बैल बन के या कुत्ता बन के !अगर किसी से बदला लेना है तो दान का हड़प करना सिखा दो अपने आप सब किया कराया निष्फल हो जाएगा!दान लेना नही देना सिखाओ!! दान का बदला चुकाने के लिए भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल हो गएआप दान देना सीखो , जो कुछ आप के पास अच्छा है दूसरे को देना सीखो तो सुयश सफलता अपने आप आ जाती है आत्मा की उन्नति के लिएकुछ लोग बोलते के सत्संग मे टाईम बर्बाद होता हैउतनी देर काम करेंगे तो और कमायेंगेतो खाना भी नही खाओ उतना समय बचाओ रोज ८ घंटे सोते क्यो हो ? -वो भी समय काम मे लगा दो! तो बोले खाना नही खायेंगे , सोयेंगे नही तो कैसे काम करेंगे.तो ऐसे ही , जैसे खाना और नींद शरीर की उन्नति के लिए जरुरी है ऐसे ही आत्मा की उन्नति के लिए सत्संग का ज्ञान जरुरी हैजितना खाना, सोना जरुरी है , उतना ही सत्संग से ज्ञान पाना भी जरुरी हैअध्यात्मिक उन्नति नही किया और सिर्फ शरीर की उन्नति किया तो बेवकूफी के सिवा कुछ नहीअध्यात्मिक उन्नति के सिवाय भौतिक उन्नति संभव ही नहीटिकेगी नही
जहा सुमति , वहा सम्पत्ति !
                      भलाई बुराई सभी मे है सब मे अच्छाई देखो, सभी मे वोही नारायण छुपा हैभगवान करे कि हम भगवान के लिए बोले , भगवान करे कि हम भगवान के लिए मिले और ये भगवान के लिए मिलतेबोलते है तो भगवान की सत्ता से मिलते बोलते है ये समझ हमारी सदा बनी रहे! सभी मे अच्छाई देखोपरस्पर भावयन्तु जहा संत के कंठ से निकली वाणी गूंजती है , वहा राग द्वेष शांत हो जाते हैसंकीर्णता दूर होती हैसुमति होती है और जहा सुमति होती वह सम्पत्ति हो जाती है
लंका मे बजा डंका
                      बलि राजा की सम्पत्ति का नाम पहुँचा दैत्यराज रावण की लंकातो लंका मे बज गया डंकाबलि मुझसे ऐश्वर्यवान कैसे हो सकता है?मैं बलि से युध्द करूँगा ललकारूँगा !तो रावण पहुँचा बलि के पासवहा पहुँचा तो वोही मिला चपराशी द्वारपाल!(भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बने थे) भगवान सर्व व्यापक है किसी मे बालक नारायण बन जाते , तो कही बेटे बन जाते कही पति बन जाते तो , कही आप के सपने मे आकर आप ही बन जातेऐसे भगवान सर्व व्यापक हैइसलिए
-   किसी को छोटा नही समझना
-   किसी का अपमान किया तो उस अपमान का बदला भी चुकाना पड़ता है
-   किसी का तिरस्कार न करो छोटे से छोटे व्यक्ति मे भी गहराई मे वोही परमात्मा है
-   किसी का बुरा न चाहो
                      तो दान का बदला चुकाने के लिए भगवान द्वारपाल बनके बैठे थे बलि के राज्य मे उसने रावण को रोका रावण ने उसे बालक के रूप मे जाना अपने बराबरी का होता तो लड़ता सोच कर रावण आगे बढ़ा तो बालक रूप मे नारायण ने रावण के पैर को अपना पैर लगा दियारावण ने पूरी ताकद लगाई लेकिन हिल न सका बलि को नीचा दिखने के लिया आया रावण खुद ही निचे मुंडी कर के वापस चला गयाकहा शराबी था और कहा भगवान उसके द्वारपाल बन के रक्षा करते सत्संग की कैसी महिमा है!कहा अन्सुमल था और कहा बापूजी बना हैकोई कहा विश्व के हर कोने मे सत्संग सुन रहे है
सत्संग जीवन व्यापन की कला और व्यवहार कि कुशलता सिखाता है!
                      भगवान करे कि सत्संग के विचारो को आप अपने जीवन मे लाये , प्यार के संबंध से भगवान के बनकर अपनी जगजीवन की गाड़ी चलाये तो भगवान तो मंगल करता है , जो जरा भी दूर नही बलि राजा की तरह तुम्हारा भी मंगल ही मंगल करेंगे

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