सद्गुरु की आकर्षिणी शक्ति।
बांग्लादेश के एक छोटे-से गाँव में र्इंट के भट्ठे में हितलाल सरकार नामक
व्यक्ति काम करता था । किसी तरह वह मामूली आमदनी से घर चलाता था । वह घर-परिवार के
सारे काम करता परंतु बीच-बीच में उसका मन पता नहीं कहाँ चला जाता, उसे कुछ भी
अच्छा नहीं लगता था । गंगा-किनारे घंटों बैठा रहता, उसे लगता जैसे जीवन अपूर्ण रह गया हो ।
एक दिन एकाएक ही उसका चित्त अत्यंत व्याकुल हो गया । उसने सोचा, ‘यहाँ रहने से
कोई लाभ नहीं । सब छोडकर कहीं चले जाना चाहिए । और उसने चलना शुरू कर दिया । उसे
ऐसा लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति अपने प्रबल आकर्षण द्वारा उसे खींचे जा रही है ।
कहाँ जाना है, क्या करना है इसका उसे कुछ पता नहीं था । वह लोकल ट्रेन से हावडा रेलवे
स्टेशन पहुँच गया औैर टिकटवाले बाबू से बोला : ‘‘एक टिकट दीजिये ।
बाबू : ‘‘कहाँ जायेंगे ?
‘‘इतने रुपये से जहाँ तक का हो वहाँ तक का एक टिकट दे दीजिये ।
बाबू ने सोचा, ‘यह भला मानस किसी कारण से परेशान है । इसलिए उसने पूछा : ‘‘क्या आप कभी
काशी गये हैं ?
‘‘नहीं ।
‘‘तो फिर काशी जाइये, इतने रुपयों में वहाँ तक का टिकट आ जायेगा । संतों के
दर्शन से शांति मिलेगी ।
हितलाल को पता था कि काशी में बंगाली टोला नाम की जगह है, वहाँ अनेक
बंगाली रहते हैं । काशी स्टेशन पर उतरकर वह पूछते-पूछते बंगाली टोला की ओर रवाना
हो गया । पतली गलियों से वह चलता गया ।
अचानक उसने देखा कि एक मकान में से एक सौम्यमूर्ति सज्जन व्यक्ति बाहर आकर
उसे बुला रहे हैं : ‘‘सुनिये, इधर आइये ।
हितलाल पास जाकर विस्मयपूर्वक बोला : ‘‘आप और हम एक-दूसरे को नहीं पहचानते फिर भी
आपने मुझे क्यों बुलाया ?
सज्जन व्यक्ति ने हँसकर कहा : ‘‘वह सब बाद में बात करेंगे । पहले आप नहाकर भोजन व आराम
करें ।
विश्राम के बाद अन्य लोगों से बातचीत के दौरान पता चला कि ये वे ही महात्मा
योगिराज श्यामाचरण लाहिडी हैं जिनका उसने केवल नाम सुना था । श्यामाचरणजी ने
हितलाल को अपने कमरे में बुलवाया और कहा : ‘‘आपका दीक्षाप्राप्ति का समय आ गया है इसलिए
मैं ही आपको यहाँ लाया हूँ ।
हितलाल को तब पता चला कि वह अदृश्य शक्ति गुरुदेव की आकर्षिणी शक्ति थी जो
उसे खींचकर ला रही थी ! हितलाल अपने गुरुदेव के चरणों में लोट गया । गुरुदेव से
दीक्षा पाकर हितलाल का असली हित हो गया, वह धन्य-धन्य हो गया ! कितने सामथ्र्य के धनी होते हैं
महापुरुष और कितने दयालु होते हैं जो अपने बिना किसी स्वार्थ के हमारा वास्तविक
हित करते रहते हैं । धन्य हैं वे सभी लाल जिन्हें ऐसे हितैषी हयात संत सद्गुरु के
रूप में मिले हैं !
किन्हीं भी ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु के एक नहीं अनेकानेक शिष्यों का ऐसा अनुभव
होता है । वे अपना जीवन-अनुभव बताते हुए कहते हैं कि ‘‘हमें ब्रह्मज्ञानी गुरु मिलेंगे और हम
सर्वव्यापक परमात्मा की प्राप्ति के रास्ते चलेंगे यह हमने कभी सोचा भी नहीं था । वह हमारे सद्गुरु की ही
आकर्षिणी शक्ति थी जो हमें अपनी ओर खींच ले गयी ।
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