संकल्प शक्ति का विकाश कैसे करें ?

     संकल्प का शुद्ध और अप्रतिहत(अखंडित) अभ्यास किया जाय तो अद्भुत कार्य भी सिद्ध किये जा सकते हैं । बलवती इच्छावाले व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं है । वासना से संकल्प अशुद्ध और निर्बल हो जाता है । इच्छाओं को वश में करने से संकल्पशक्ति बढ़ती है । इच्छाएँ जितनी कम हों संकल्प उतना ही बलवान होता है । मनुष्य के भीतर कई प्रकार की मानसिक शक्तियाँ हैं, जैसे धारणाशक्ति, विवेकशक्ति, अनुमानशक्ति, मनःशक्ति, स्मृतिशक्ति, प्रज्ञाशक्ति आदि । ये सभी संकल्पशक्ति के विकसित होने पर पलक मारते ही काम करने लग जाती है ।

     ध्यान का नियमित अभ्यास, सहिष्णुता, विपत्तियों में धैर्य, तपस्या, प्रकृति-विजय, तितिक्षा, दृढ़ता तथा सत्याग्रह और घृणा, अप्रसन्नता व चिड़चिड़ाहट का दमन ये सब संकल्प के विकास को सुगम बनाते हैं । धैर्यपूर्वक सबकी बातें सुननी चाहिए । इससे संकल्प का विकास होता है तथा दूसरों के हृदय को जीता जा सकता है ।

      विषम परिस्थितियों की शिकायत कभी न करें । जहाँ कहीं आप रहें और जहाँ कहीं आप जायें, अपने लिए अनुकूल मानसिक जगत का निर्माण करें । सुख और सुविधाओं के उपलब्ध होने से आप मजबूत नहीं बन सकते । विषम और अनुपयुक्त वातावरण से भागने का प्रयत्न न करें । भगवान ने आपकी त्वरित उन्नति के लिए ही आपको वहाँ रखा है । अतः सभी परिस्थितियों का सदुपयोग करें । किसी भी वस्तु से अपने मन को उद्विग्न न होने दें । इससे आपकी संकल्पशक्ति विकास होगा । प्रत्येक स्थान व अवस्था में अपनेको प्रसन्न रखने का स्वभाव बनायें । इससे आपके व्यक्तित्व में बल औ तेज उतरेगा ।

      मन की एकाग्रता का अभ्यास संकल्प की उन्नति में सहायक है । मन का क्या स्वभाव है इसका अच्छी तरह से ज्ञान प्राप्त कर लें । मन किस तरह इधर-उधर घूमता है और किस प्रकार अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है यह सब भली-भाँति हृदयंगम कर लें । मन के चलायमान स्वभाव को वश में करने के लिए आसान और प्रभावकारी तरीके खोज लें । व्यर्थ की बातचीत सदा के लिए त्याग दें । सभीको समय के मूल्य का ज्ञान होना चाहिए । संकल्प में तेज तभी निखरेगा, जब समय का उचित उपयोग किया जाय । व्यवहार और दृढ़ता, लगन व ध्यान, धैर्य तथा अप्रतिहत प्रयत्न, विश्वास और स्वावलम्बन आपको अपने सभी प्रयासों में सफलता प्राप्त करायेंगे ।

      आपको अपने संकल्पों का व्यवहार योग्यतानुसार करना चाहिए, अन्यथा संकल्प क्षीण हो जायेगा, आप हतोत्साहित हो जायेंगे ।

अपना दैनिक नियम अथवा कार्य-व्यवस्था अपनी योग्यता के अनुसार बना लें और उसका सम्पादन नित्य सावधानी से करें । अपने कार्यक्रम में पहले-पहल कुछ ही विषयों को सम्मिलित करें । यदि आप अपने कार्यक्रम को अनेकों विषयों से भर देंगे तो न उसे निभा सकेंगे और न लगन के साथ दिलचस्पी ही ले सकेंगे । आपका उत्साह क्षीण होता जायेगा । शक्ति तितर-बितर हो जायेगी । अतः आपने जो कुछ करने का निश्चय किया है, उसका अक्षरशः पालन प्रतिदिन करें ।

      विचारों की अधिकता संकल्पित कार्यों में बाधा पहुँचाती है । इससे भ्रांति, संशय और दीर्घसूत्रता का उदय होता है । संकल्प की तेजस्विता में ढीलापन आ जाता है । अतः यह आवश्यक है कि कुछ समय के लिए विचार करें फिर निर्णय करें । इसमें अनावश्यक विलम्ब न करें । कभी-कभी सोचते तो हैं पर कर नहीं पाते । उचित विचार और अनुभवों के अभाव में ही यह हुआ करता है । अतः उचित रीति से सोचना चाहिए और उचित निर्णय ही करना चाहिए, तब संकल्प की सफलता अनिवार्य है । किंतु केवल संकल्प ही किसी वस्तु की प्राप्ति में सफल नीं होता । संकल्प के साथ निश्चित उद्देश्य को भी जोड़ना होगा । इच्छा या कामना तो मानस-सरोवर में एक छोटी लहर-सी है परंतु संकल्प वह शक्ति है जो इच्छा को कार्यरूप में परिणत कर देती है । संकल्प निश्चय करने की शक्ति है ।

     जो मनुष्य संकल्प-विकास की चेष्टा कर रहा है, उसे सदा मस्तिष्क को शांत रखना चाहिए । सभी परिस्थितियों में अपने मन का संतुलन कायम रखना चाहिए । मन को शिक्षित तथा अनुशासित बनाना चाहिए । जो व्यक्ति मन को सदा संतुलित रखता है तथा जिसका संकल्प तेजस्वी है, वह सभी कार्यों में आशातीत सफलता प्राप्त करेगा ।


      अनुद्विग्न मन, समभाव, प्रसन्नता, आन्तरिक बल, कार्य-सम्पादन की क्षमता, प्रभावक व्यक्तित्व, सभी उद्योगों में सफलता, ओजपूर्ण मुखमंडल, निर्भयता आदि लक्षणों से पता चलता है कि संकल्पोन्नति हो रही है ।