सर्वसुलभ, बहूपयोगी, स्वास्थ्यरक्षक मेवेः किशमिश व
मुनक्के।
आज लगातार बढ़
रही बीमारियों एवं उनके महंगे उपचार को देखते हुए रोगप्रतिरोधक, पोषक
व सर्वसुलभ प्राकृतिक उपहारों को जानना व उनका लाभ उठाना आवश्यक हो गया है। ऐसे ही
प्रकृति के वरदान हैं किशमिश व मुनक्के। इनकी शर्करा शरीर में अतिशीघ्र आत्मसात हो
जाती है, जिससे शीघ्र ही शक्ति एव स्फूर्ति प्राप्त हो
होती है। 100 ग्राम किशमिश में 1.88
मि.ग्रा. लौह तत्त्व, 50 मि.ग्रा. कैल्शियम एवं 3.07
ग्राम प्रोटीन पाया जाता है।
मुनक्का किशमिश
की अपेक्षा ज्यादा गुणकारी है। मुनक्के पचने में भारी, कफ-पित्तशामक
एवं वीर्यवर्धक होते हैं। इनका उपयोग खाँसी, पेशाब की जलन
एवं शौच साफ लाने के लिए किया जाता है। इनके सेवन से शरीर में शक्ति की वृद्धि
होती है और रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। रक्त और वीर्य की कमी में काले
मुनक्कों का सेवन लाभकारी है। बच्चों को नियमित मुनक्के खाने को दें तो उनके
शारीरिक विकास में सहायता मिलती है। किशमिश पचने में हलकी, मधुर, शीतल, रुचिकारक, वात-पित्तशामक, शारीरिक
मानसिक कमजोरी एवं मुख के कड़वेपन को दूर करने वाली होती है।
किशमिश
का पेय
25 से 50
ग्राम किशमिश को 250 से 500 मि.ली. पानी
में मंद आग पर पकायें। आधा पानी बचने पर उतार लें, मसलें तथा छान
के सेवन करें। इसमें नींबू का रस भी मिला सकते हैं। यह पेय थकावट में बहुत लाभकारी
है तथा सुस्ती को दूर कर शरीर में नयी स्फूर्ति का संचार करता है। दूध के अभाव में
या जिन्हें दूध अनुकूल नहीं पड़ता हो उनके लिए इसका उपयोग लाभदायी है।
पित्त-प्रकोपजन्य
समस्याओं में…..
50 ग्राम किशमिश
रात को पानी में भिगो दें। सुबह मसलकर रस निकाल लें। उसमें आधा चम्मच जीरे का
चूर्ण व मिश्री मिला के पियें। इससे
पित्त-प्रकोपजन्य जलन, तृष्णा, पित्त ज्वर, रक्तपित्त
आदि व्याधियों में लाभ होता है।
आवश्यक निर्देशः
अंगूर, किशमिश या मुनक्कों को अच्छी तरह गुनगुने पानी से धोने के बाद ही
उनका उपयोग करें. जिससे धूल-मिट्टी, कीड़े, जंतुनाशक
दवाई आदि निकल जाय।
स्वास्थ्य
लाभ के अनुपम प्रयोग
१.
आधासीसी में देशी गाय का शुद्ध घी 2-4
बूँद प्रातःकाल दोनों नथुनों में डालें।
२.
लहसुन के रस से सिद्ध किया सरसों का
तेल कान के दर्द को तुरंत दूर कर देता है। आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर
उपलब्ध कर्णबिन्दु कानदर्द में बहुत लाभकारी हैं।
३.
कमरदर्द में खसखस और मिश्री समभाग लेकर
चूर्ण बना के रख लें। प्रतिदिन 10 ग्राम चूर्ण चबा के खायें व ऊपर से
घूँट-घूँट गर्म दूध पियें।
४.
खाज-खुजली पर गोबर का रस लगाने से राहत
मिलती है।
५.
जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का रस
लगाने से जलन शांत होती है।
६.
मुँह में छाले हों तो रात को 1
चम्मच देशी गाय का घी दूध में मिला के सेवन करें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून
2017, पृष्ठ संख्या 32, अंक 294
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