छोटी-सी बात में जीवन का परम रहस्य

            एक शिष्य ने कडी मेहनत और लगन से गुरु-आश्रम के लिए एक बढ़िया कलाकृति बनायी । गुरुजी ने उस कलाकृति में एक रेखा खींचकर हलका-सा परिवर्तन कर दिया ।

            शिष्य दंग रह गया, बोला : ‘‘गुरुदेव ! आश्चर्य है ! इतने छोटे-से परिवर्तन ने इस कलाकृति में जान डाल दी ।


            ‘‘हाँ बेटे ! बहुत छोटी-छोटी बातों से ही महान वस्तुओं का निर्माण होता है । जैसे स्वप्न में की हुई ५० पैसे की करकसर और ५ करोड रुपये की करकसर ये दोनों स्वप्न देखनेवाले व्यक्ति की विचारधारा मात्र हैं । किसी गरीब की ५० पैसे की करकसर की विचारधारा ने ही समय आने पर जब वह करोडपति बना तब ५ करोड की करकसर करने में योगदान दिया । छोटी-छोटी बातों, घटनाओं में सावधान रहकर किये गये छोटे-छोटे विचार हमारे संस्कार और स्वभाव का रूप ले लेते हैं और जब अचानक छोटी या बडी-से-बडी भयंकर घटनाएँ घटती हैं, तब हमारे स्वभाव से वे सुसंस्कार विचाररूप में स्वाभाविक फूट निकलते हैं और हमें सफल एवं सुखमय बनाते हैं । अतः वास्तव में बात या क्रिया छोटी या बडी है इसका विचार करने के स्थान पर हमें उनकी मूल धातु विचार, ‘संस्कार अथवा स्वभाव पर दृष्टि रखकर अपने सुस्वभाव के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए । जो व्यवहार में, सेवा में सावधान व जिम्मेदार बनता है वही जब आत्मचिंतन में लगेगा तो एकाग्र होकर आत्मानुसंधान करेगा और जो प्रतिदिन लगन से ध्यानाभ्यास करेगा उसकी कार्य-व्यवहार में भी सूक्ष्मता बढती जायेगी । अतः जीवन की हर उपयोगी बात को सूक्ष्मता बढाने एवं दिव्य जीवन-प्राप्ति हेतु साधन बनाना चाहिए फिर चाहे वह छोटी बात हो या बडी । छोटी-बडी का भेद मन की कल्पना में है, मूल तत्त्व में नहीं ।