मित्रो, हमारा काम न किसी का दिल दुखाना है और न ही किसी की आस्था को ठेस पहुँचाना, आप एक बात बताये, आज से 15 साल पहले साईं को पूजने वाले न के बराबर थे, साईं की मूर्ति किसी भी हिन्दू मंदिर में नहीं थी, यहाँ तक की साईं के खुद के मंदिर भी नहीं थे, पर धीरे धीरे मंदिर बनते रहे और बाकी मंदिरों में साईं घुसता रहा, एक एक करके हर मंदिर में साईं बैठता रहा, हिन्दू ये सोच कर की साईं एक अच्छा संत है उसके आगे सर झुकाते रहे, पहले सब धीरे धीरे चलता रहा फिर एक दिन साईं के आगे ॐ और पीछे राम लगा दिया, राम सीता को साईं राम में बदल दिया गया, एक भी हिन्दू को ये समझ नहीं आया की ऐसा क्यों हो रहा है, धीरे धीरे साईं राम से साईं कृष्ण और फिर साईं शिव भी बन गये, साईं को कभी राम कभी शिव का अवतार बना दिया, पर किसी को ये तक नहीं पता की साईं के माता पिता कौन थे, जब हम साईं के जीवन चरित्र को देखते है तो पता चलता है की साईं मांस खाता था बकरे हलाल करता था, जीवन भर वो बीडी चिलम पीता और पिलाता रहा, कुरान पढता रहा पर कभी किसी सनातनी ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया, उल्टा लोगो को न्याय संहिता और दर्शन शास्त्र न पढने को कहता रहा, गंगाजल की अवहेलना करता रहा, जीवन भर वो केवल अल्लाह मालिक बोलता रहा पर कभी राम नाम तक नहीं लिया, ऐसे में इस प्रकार के कुकर्मी को मंदिर में बिठा कर श्री राम के समान बताना क्या हमारे भगवानो देवी देवताओं का अपमान नहीं है, जिस साईं ने अंत समय में खुद को कब्र में दफ़नाने को कहा और ऐसे व्यक्ति को भगवान् कृष्ण ने गीता के अध्याय 17 में पूजने से मना किया है, ऐसे में हमारे लिए क्या आवश्यक है साईं को पूजना या श्री कृष्ण की बात मानना? साईं के भक्त सोचे और विचार अवश्य करे, आप क्या चाहते है – आपकी आने वाली संताने हिन्दू बनी रहे या मुस्लिम बन जाए?? अंधभक्ति को छोड़े और सच्चे ईश्वर श्री कृष्ण को जाने, जय श्री कृष्ण। माना की कलयुग का अँधेरा घना है, पर अधर्म की पूजा करना भी तो मना है, मित्रो, साईं को अधिकतर लोग यही कहते है की वो किसी धर्म से नहीं थे, सभी से उन्हें प्यार था, सभी की भलाई करते थे, आदि आदि, आज से 10-15 साल पहले साईं का नाम तक नहीं था, 95% साईं भक्तो को यही नहीं पता की साईं को मरे हुए केवल 92 साल हुए है, अधिकतर साईं भक्तो ने साईं सत्चरित्र ही नहीं पढ़ी, झूठ का प्रचार करके हिन्दू विरोधी साईं को एक महान संत तो कभी इश्वर बताया जा रहा है, आइये आपको साईं बाबा की महानता के कुछ दर्शन कराते है, इसे साईं विरुद्ध न समझे, हम तो साईं बाबा का ही प्रचार कर रहे है, @ अध्याय 4, 5, 7 – साईं बाबा के होंठो पर सदैव “अल्लाह मालिक” रहता था, @ अध्याय 38 – मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे “मौलवी से फातिहा” पढने के लिए कहते थे, @ अध्याय 18, 19 – इस मस्जिद में बैठ कर मैं सत्य ही बोलुगा की किन्ही साधनाओ या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है, @ अध्याय 10- न्याय या दर्शन शास्त्र या मीमांसा पढने की आवश्यकता नहीं है, @ अध्याय 23 – प्राणायाम, श्वासोंचछवासम हठयोग या अन्य कठिन साधनाओ की आवश्यकता नहीं है, @ अध्याय 28 – चावडी का जुलुस देखने के दिन साईं बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे, @अध्याय 43, 44 – 1886 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन साईं बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई, sai satcharitra exposed क्या हमारा विरोध करने वाले ये बतायेंगे की साईं ने ऐसा क्यों कहा की किसी न्याय संहिता, दर्शन शास्त्र को न पढ़े, क्यूंकि उसे पढने के बाद तो व्यक्ति में स्वयं ही इतनी बुद्धि आ जाएगी की वो हजार पाखंडियो का अकेले ही सामना कर लेगा, और यदि लोग ये पढ़ ले, तो साईं का धंधा ही बंद, न योग की आवश्यकता, न शास्त्र पढो, मस्जिद में आओ और जाओ, संत होकर भी दमा से पीड़ित, संत है पर फिर भी भगवान् की उपाधि, भगवान् होकर भी मांस भक्षण, फातिहा पढने वाले को जबरदस्ती हिन्दू बनाने का षड्यंत्र, अल्लाह मालिक को सबका मालिक एक में बदलने का झूठ, अब साईं के भक्त कितना झूठ बोलेंगे, कहाँ तक झूठ बोलेंगे, हर तरफ केवल झूठ का व्यापार, झूठ का प्रचार, क्या साईं को सच कह कर प्र्चारित नहीं कर सकते थे, नहीं, क्यों इससे दूकान उसी दिन बंद हो जाती, साईं के भक्त आँखे खोले और सत्य को जाने, यदि सत्य को नहीं पचा सकते तो काहे का धर्म फिर, ये तो अधर्म हुआ न, साईं नाम के अधर्म के लिए ही शास्त्रों में लिखा है की, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, सनातन धर्म की जय, जय जय श्री राम। यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं।