झारखंड में सिर्फ देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम ही नहीं अपितु कई प्राचीन शिवमंदिरों को बाबा धाम के नाम से जाना जाता है। ऐसा ही एक बाबा धाम है पश्चिमी सिंहभूम जिले का महादेवशाल धाम। गोइलकेरा नामक जगह में स्थित महादेवशाल में एक ही शिवलिंग की दो जगहों पर पूजा होती है। यहां खंडित शिवलिंग का मुख्य भाग मंदिर के गर्भगृह में है, जबकि छोटा हिस्सा मंदिर से दो किमी दूर रतनबुरू पहाड़ी पर स्थापित है। यहां स्थानीय आदिवासी पिछले डेढ़ सौ वर्षों से ग्राम देवी और शिवलिंग की साथ-साथ पूजा करते आ रहे हैं। शिवलिंग खंडित होने की रोचक कहानी शिवलिंग के प्रकट और खंडित होने की रोचक गाथा है। जानकार बताते हैं कि गोइलकेरा के बड़ैला गांव के पास बंगाल-नागपुर रेलवे द्वारा कोलकाता (तब कलकत्ता) से मुंबई (तब बॉम्बे) के बीच रेलवे लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था। १९ वीं शताब्दी के मध्य में रेलवे लाइन बिछाने के लिए जब स्थानीय आदिवासी मजदूर खुदाई का कार्य कर रहे थे, उसी समय शिवलिंग दिखाई दिया। मजदूरों ने शिवलिंग को देखते ही कार्य बंद कर दिया और नतमस्तक हो गए। लेकिन वहां उपस्थित ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने इसे बकवास करार देते हुए फावड़ा उठा लिया और शिवलिंग पर वार कर दिया। शिवलिंग तो दो टुकड़ों में बंट गया, लेकिन काम से लौटते समय रास्ते में ब्रिटिश अभियंता की भी मौत हो गई। इसके बाद शिवलिंग के छोटे हिस्से को रतनबुरू पहाड़ी पर ग्राम देवी के बगल में स्थापित किया गया। खुदाई में जहां शिवलिंग प्रकट हुआ था, वहां आज महादेवशाल मंदिर है। बदलना पड़ा निर्णय कहते हैं कि शिवलिंग के प्रकट होने के बाद मजदूरों ग्रामीणों ने वहां रेलवे लाइन के लिए खुदाई कार्य का जोरदार विरोध किया। अंग्रेज अधिकारियों के साथ आस्थावान लोगों की कई बार बैठकें भी हुई। ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी की मौत की गूंज ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्यालय कोलकाता तक पहुंची। आखिरकार ब्रिटिश हुकूमत ने रेलवे लाइन के लिए शिवलिंग से दूर खुदाई कराने का फैसला किया। इसकी वजह से चलते इसकी दिशा बदली गई और दो बड़ी सुरंगों का निर्माण कराना पड़ा। आज भी मौजूद है अभियंता की कब्र ब्रिटिश इंजीनियर की रास्ते में हुई मौत के बाद उसके शव को गोइलकेरा लाया गया। यहां पश्चिमी रेलवे केबिन के पास स्थित साइडिंग में शव को दफनाया गया। इंजीनियर की कब्र यहां आज भी मौजूद है, जो डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी उस घटना की याद दिलाती है। दोनों जगहों पर है आस्था "खुदाई में शिवलिंग मिलने के बाद महादेवशाल में मंदिर बना और नियमित पूजा होने लगी। जबकि रतनबुरू में शिवलिंग का जो हिस्सा है, उसकी पूजा ग्राम देवी के साथ गांव वाले आज भी करते हैं। दोनों ही जगह लोगों की आस्था है। रतनबुरू के बारे में कहा जाता है कि फावड़े से प्रहार के बाद शिवलिंग का छोटा हिस्सा छिटककर यहां स्थापित हो गया था।" - बालमुकुंद मिश्र, पुजारी, गोइलकेरा। १५० वर्षों से हो रही है पूजा "रतनबुरू में शिवलिंग और ग्राम देवी मां पाउड़ी की पूजा प्रतिदिन होती है। गांव के दिउरी भोलानाथ सांडिल वहां नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। परंपरा के अनुसार पहले शिवलिंग और उसके बाद मां पाउड़ी की पूजा की जाती है। यह सिलसिला ब्रिटिश हुकूमत के समय से चल रहा है।" - मंगलसिंह सांडिल, स्थानीय ग्रामीण जलार्पण को उमड़ रहे भक्त शिवजी के प्रिय सावन महीने में महादेवशाल धाम में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। सावन में पडऩे वाली सोमवारी पर यह भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। शिवभक्त कांवर में चक्रधरपुर स्थित मुक्तिधाम घाट और राउरकेला स्थित वेद व्यास नदी से जल लेकर पैदल ही महादेवशाल पहुंच रहे हैं। जलार्पण को उमड़ रहे भक्त शिवजी के प्रिय सावन महीने में महादेवशाल धाम में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। सावन में पडऩे वाली सोमवारी पर यह भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। शिवभक्त कांवर में चक्रधरपुर स्थित मुक्तिधाम घाट और राउरकेला स्थित वेद व्यास नदी से जल लेकर पैदल ही महादेवशाल पहुंच रहे हैं।