तुलसी व तुलसी-माला की महिमा
तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। यह गर्म और त्रिदोषशामक है। रक्तविकार, ज्वर, वायु, खाँसी एवं कृमि निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारी है। सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं। काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं। तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं। वीर्यदोष में इसके बीज उत्तम हैं तुलसी की चाय पीने से ज्वर, आलस्य, सुस्ती तथा वातपित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है।
तुलसी की महिमा बताते हुए भगवान शिव नारदजी से कहते हैं-
पत्रं पुष्पं फलं मूलं शाखा त्वक् स्कन्धसंज्ञितम्।
तुलसीसंभवं सर्वं पावनं मृत्तिकादिकम्।।
'तुलसी का पत्ता, फूल, फल, मूल, शाखा, छाल, तना और मिट्टी आदि सभी पावन हैं।'
(पद्मपुराण, उत्तर खंडः 24.2)
जहाँ तुलसी का समुदाय हो, वहाँ किया हुआ पिण्डदान आदि पितरों के लिए अक्षय होता है।
तुलसी सेवन से शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है। मंदाग्नि, कब्जियत, गैस, अम्लता आदि रोगों के लिए यह रामबाण औषधि सिद्ध हुई है।
गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है। तुलसी की माला पर भगवन्नाम जप करने से एवं गले में पहनने से आवश्यक एक्युप्रेशर बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव में लाभ होता है, संक्रामक रोगों से रक्षा होती है तथा शरीर स्वास्थ्य में सुधार होकर दीर्घायु की प्राप्ति होती है। तुलसी माला धारण करने से शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है। तुलसी शरीर की विद्युत संरचना को सीधे प्रभावित करती है। इसको धारण करने से शरीर में विद्युतशक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीव-कोशों द्वारा धारण करने के सामर्थ्य में वृद्धि होती है।
गले में माला पहने से बिजली की लहरें निकलकर रक्त संचार में रूकावट नहीं आनि देतीं। प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर चुम्बकीय मंडल विद्यमान रहता है।
तुलसी की माला पहनने से आवाज सुरीली होती है, गले के रोग नहीं होते, मुखड़ा गोरा, गुलाबी रहता है। हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला फेफड़े और हृदय के रोगों से बचाती है। इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है।
तुलसी की माला धारक के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। कलाई में तुलसी का गजरा पहनने से नब्ज नहीं छूटती, हाथ सुन्न नहीं होता, भुजाओं का बल बढ़ता है। तुलसी की जड़ें कमर में बाँधने से स्त्रियों को, विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है। कमर में तुलसी की करधनी पहनने से पक्षाघात नहीं होता, कमर, जिगर, तिल्ली, आमाशय और यौनांग के विकार नहीं होते हैं।
यदि तुलसी की लकड़ी से बनी हुई मालाओं से अलंकृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटि गुना फल देने वाला होता है। जो मनुष्य तुलसी की लकड़ी से  बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुनः प्रसाद रूप से उसे भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं।
तुलसी दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, तुलसी लगाने पर भगवान के समीप ले जाती है और भगवद चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 26, अंक 213
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तुलसी माला की महिमा
एक सत्य घटना
राजस्थान में जयपुर के पास एक इलाका है – लदाणा। पहले वह एक छोटी सी रियासत थी। उसका राजा एक बार शाम के समय बैठा हुआ था। उसका एक मुसलमान नौकर किसी काम से वहाँ आया। राजा की दृष्टि अचानक उसके गले में पड़ी तुलसी की माला पर गयी। राजा ने चकित होकर पूछाः
"क्या बात है, क्या तू हिन्दू बन गया है ?"
"नहीं, हिन्दू नहीं बना हूँ।"
"तो फिर तुलसी की माला क्यों डाल रखी है ?"
"राजासाहब ! तुलसी की माला की बड़ी महिमा है।"
"क्या महिमा है ?"
"राजासाहब ! मैं आपको एक सत्य घटना सुनाता हूँ। एक बार मैं अपने ननिहाल जा रहा था। सूरज ढलने को था। इतने में मुझे दो छाया-पुरुष दिखाई दिये, जिनको हिन्दू लोग यमदूत बोलते हैं। उनकी डरावनी आकृति देखकर मैं घबरा गया। तब उन्होंने कहाः
"तेरी मौत नहीं है। अभी एक युवक किसान बैलगाड़ी भगाता-भगाता आयेगा। यह जो गड्ढा है उसमें उसकी बैलगाड़ी का पहिया फँसेगा और बैलों के कंधे पर रखा जुआ टूट जायेगा। बैलों को प्रेरित करके हम उद्दण्ड बनायेंगे, तब उनमें से जो दायीं ओर का बैल होगा, वह विशेष उद्दण्ड होकर युवक किसान के पेट में अपना सींग घुसा देगा और इसी निमित्त से उसकी मृत्यु हो जायेगी। हम उसी का जीवात्मा लेने आये हैं।"
राजासाहब ! खुदा की कसम, मैंने उन यमदूतों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि 'यह घटना देखने की मुझे इजाजत मिल जाय।' उन्होंने इजाजत दे दी और मैं दूर एक पेड़ के पीछे खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में उस कच्चे रास्ते से बैलगाड़ी दौड़ती हुई आयी और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही बैलगाड़ी को झटका लगा, बैल उत्तेजित हुए, युवक किसान उन पर नियंत्रण पाने में असफल रहा। बैल धक्का मारते-मारते उसे दूर ले गये और बुरी तरह से उसके पेट में सींग घुसेड़ दिया और वह मर गया।"
राजाः "फिर क्या हुआ ?"
नौकरः "हजूर ! लड़के की मौत के बाद मैं पेड़ की ओट से बाहर आया और दूतों से पूछाः 'इसकी रूह (जीवात्मा) कहाँ है, कैसी है ?"
वे बोलेः 'वह जीव हमारे हाथ नहीं आया। मृत्यु तो जिस निमित्त से थी, हुई किंतु वहाँ हुई जहाँ तुलसी का पौधा था। जहाँ तुलसी होती है वहाँ मृत्यु होने पर जीव भगवान श्रीहरि के धाम में जाता है। पार्षद आकर उसे ले जाते हैं।'
हुजूर ! तबसे मुझे ऐसा हुआ कि मरने के बाद मैं बिहिश्त में जाऊँगा कि दोजख में यह मुझे पता नहीं, इसले तुलसी की माला तो पहन लूँ ताकि कम से कम आपके भगवान नारायण के धाम में जाने का तो मौका मिल ही जायेगा और तभी से मैं तुलसी की माला पहनने लगा।'
कैसी दिव्य महिमा है तुलसी-माला धारण करने की ! इसीलिए हिन्दुओं में किसी का अंत समय उपस्थित होने पर उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल डाला जाता है, ताकि जीव की सदगति हो जाय।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 27, अंक 213
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तुलसी एक महाँसंजीवनी
तुलसी देव वनस्पति है। इसके सभी भाग औषधि के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं।
तुलसी रक्त की कमी दूर करती है। इसके नियमित सेवन से हीमोग्लोबिन अत्यन्त तेजी से बढ़ता है व दिन भर स्फूर्ति रहती है। रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने में यह सर्वश्रेष्ठ है।
इसके नियमित सेवन से वृद्ध व्यक्तियों की दुर्बलता दूर होती है। उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है
सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय खाद्य पदार्थों में तुलसी दल डालने से उनमें विकृति नहीं आती। तुलसी में विद्युत शक्ति होने से वह ग्रहण के समय सौरमंडल की विनाशकारी गैसों और सूर्य व चन्द्र से निकलने वाली हानिकारक किरणों का प्रभाव खाद्य पदार्थों पर नहीं पड़ने देती।
तुलसी की माला पहनने से टॉन्सिलाइटिस व गले के रोगों से रक्षा होती है।
तुलसी की माला पर जप करने से उँगलिओं के एक्युप्रेशर बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है।
तुलसी के सेवन व इसके निकट रहने से बुरे विचारों पर नियंत्रण रहता है।
इसके नियमित सेवन से टूटी हुई हड्डियाँ जुड़ने में मदद मिलती है।
तुलसी की पत्तियों के सेवन से क्रोधावेश एवं कामोत्तेजना पर नियंत्रण रहता है।
तुलसी के बगीचे में बैठें, लेटें, खेलें, व्यायाम करें, पढ़ें – इससे दीर्घायु मिलेगी। सुख-वैभव पाने के लिए उत्साह मिलेगा। तुलसी कवच का काम करती है।
तुलसी के समीप पढ़ने, सच्चिंतन करने, दीप जलाने और पौधे की परिक्रमा करने से पाँचों इन्द्रियों के विकार दूर होने लगते हैं।




तुलसी के लाभकारी प्रयोग
कान के रोगों में- तुलसी की पत्तियों को ज्यादा मात्रा में लेकर सरसों के तेल में पकायें। पत्तियाँ जल जाने पर तेल उतारकर छान लें। ठण्डा होने पर इस तेल की 1-2 बूँद कान में डालने से कान के रोगों में लाभ होता है।
खाँसीः तुलसी के रस में अदरक का रस व शहद मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की खाँसी में लाभ होता है।
तुलसी की मंजरी का चूर्ण बनाकर शहद के साथ चाटने से कफ, खाँसी दूर होगी तथा सीने की खरखराहट मिटेगी।
तुलसी व अडूसे के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से पुरानी खाँसी भी ठीक हो जाती है।
कीड़े, मच्छर काटने परः तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पानी में मिलाकर पियें एवं तुलसी पीसकर कर कीड़े के काटे भाग पर लगायें।
तुलसी के पत्तों को नमक के साथ पीसकर लगाने से भौंरा, बर्र, बिच्छू के दंश की वेदना व जलन शीघ्र मिट जाती है।
सिरदर्द मिटाने के लिए सरल उपाय
लौकी का गूदा सिर पर लेप करने से सिरदर्द में तुरंत आराम मिलता है। सोंठ, तेजपत्ता, काली मिर्च, अर्जुन, इलायची, दालचीनी आदि से बनी आयुर्वेदिक चाय में दूध की जगह नींबू मिलाकर पियें और सो जायें। पेट और सिर दोनों को आराम मिलेगा।
आयुर्वेदिक चाय संत श्री आसारामजी आश्रमों व आश्रम की समितियों के सेवाकेन्द्रों पर भी उपलब्ध है।
पित्त से उत्पन्न सिरदर्द में खीरा काटकर सूँघने एवं सिर पर रगड़ने से तुरंत आराम मिलता है।
एक चम्मच सौंफ चबाकर दूध पी लें। पेट और सिरदर्द में लाभ होगा।
सिरदर्द में सभी उँगलियों के ऊपरी सिरों पर रबरबेंड लपेट लें, सिरदर्द एवं थकान तुरंत दूर होगी।
जलने पर क्या करें ?
पटाखे सावधानी से जलायें। जल जाने पर कच्चे आलू के पतले चिप्स जले हुए स्थान पर रखने से लाभ होता है।
मंत्रों की शक्ति दे सुख-शांति और समृद्धि
नौकरी-धंधे के लिये जाते हैं, सफलता नहीं मिलती तो इक्कीस बार श्रीमदभगवदगीता का अंतिम श्लोक बोलकर फिर घर से निकलें तो सफलता मिलेगी। श्लोकः
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिमम्।।
पीपल के पेड़ में शनिवार और मंगलवार को दूध, पानी और गुड़ मिलाकर चढ़ायें और प्रार्थना करें कि 'भगवान ! आपने गीता में कहा है 'वृक्षों में पीपल मैं हूँ।' तो हमने आपके चरणों में अर्घ्य अर्पण किया है, इसे स्वीकार करें और मेरी नौकरी धंधे की जो समस्या है वह दूर हो जाये।'
श्री हरि.. श्री हरि.... श्री हरि... थोड़ी देर जप करें। तीन बार जपने से एक मंत्र हुआ। उत्तराभिमुख होकर इस मंत्र की 1-2 माला शांतिपूर्वक करें और चलते-फिरते भी इसका जप करें तो विशेष लाभ होगा और रोजी रोटी के साथ ही शांति, भक्ति और आनन्द भी बढ़ेगा।
बस, अपने-आप समस्या हल हो जायेगी।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 13, अंक 160
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