विगत कुछ वर्षोंसे, लगभग वर्ष २०१० से संपूर्ण विश्‍वके जलाशयोंके संदर्भमें एक अद्भूत घटना चर्चामें है । नदी, झील, समुद्र एवं वर्षाके जलका रंग लाल हो रहा है । इनमेंसे कुछ नदियोंका रंग एक ही रातमें परिवर्तित हो गया, जिससे जलाशयोंका एक बडा क्षेत्र रक्तके रंग जैसा लाल हो गया । इस घटनापर वैज्ञानिक किसी एक निष्कर्षपर नहीं पहुंच पा रहे हैं एवं इन घटनाआेंकी प्रत्येक कडीको वे सुलझा नहीं पा रहे हैं ।
इस विषयमें विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए जा रहे है, उदा. -
१. लाल शैवालका फलना-फूलना
२. प्रदूषण
३. लवण क्यारी (सॉल्ट फ्लैट अथवा पैन)के रूपमें लवण (नमक) का उच्च मात्रामें जमना, जिससे नीला जल रक्तके रंगमें परिवर्तित होना । (भूविज्ञानकी भाषामें सॉल्ट फ्लैटका अर्थ है, लवण और अन्य खनिजोंका भूमिपर आच्छादन)
४. जलवायु परिवर्तन - समुद्रोंका अम्लीकरण
    कुछ लोगोंका यह मत है कि यह घटना आगामी भीषणकाल अथवा विश्‍वयुद्धका संकेत है । यह घटना अपनेआपमें विचित्र है, परंतु सत्य यह है कि नदी, झील एवं समुद्री जलका लाल रंगमें परिवर्तन, विश्‍वके अधिकाधिक जलाशयोंमें फैल रहा है । इस कारण लाल जलाशयोंमें सहस्रोंकी संख्यामें मछली एवं पक्षी मृत हो रहे हैं । रेड टाइड कहलानेवाली ऐसी घटनाएं अधिकांशतः नदीमुख एवं समुद्रके तटीय क्षेत्रोंमें पाई जाती हैं, हालांकि ताजे जलमें भी इनका प्रादुर्भाव हो सकता है ।
१. विविध जलाशयोंका रंग लाल होना, एक अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
१.१ महायुद्धकी पूर्वसूचना
अनिष्ट शक्तियां : एस.एस.आर.एफ.में हम अनिष्ट शक्तियां शब्दका प्रयोग सामूहिकरूपसे सूक्ष्म विश्‍वमें विद्यमान उन सभी घटकोंके लिए करते हैं, जो मानवजातिको हानि पहुंचाना चाहते हैं । यदि किसी घटनाको अत्यधिक प्रयत्नोंके उपरांत भी वैज्ञानिक न समझ पाएं, तो हम यह समझ सकते हैं कि कदाचित उस घटनाका मूल कारण आध्यात्मिक है ।
    आज सूक्ष्म स्तरपर पूरा ब्रह्मांड एक बहुत बडे महायुद्धका सामना कर रहा है । यह युद्ध अधिकांशतः सूक्ष्म स्तरपर ही लडा जाएगा; तथापि इस सूक्ष्म युद्धका एक अंश पृथ्वीपर भी प्रकट होगा एवं पूरी मानवतापर इसका गंभीर प्रभाव होगा । इसके कारण अनेक वैश्‍विक संकट, प्राकृतिक आपदाएं होंगी तथा अंततः इनकी परिणति तृतीय विश्‍वयुद्धमें होगी ।
    इस सूक्ष्मयुद्धके पीछे मांत्रिकोंका हाथ है । जब पृथ्वीपर रज-तम बढता है, तब पर्यावरणमें अस्थिरता बढती है, जो आगे चलकर युद्ध एवं प्राकृतिक आपदाआेंका रूप ले लेती है । जब रज-तम अपनी चरम सीमापर पहुंचता है, तब मांत्रिकोंके लिए तत्काल युद्धजनक स्थिति उत्पन्न करना सरल होता है । हम वर्तमानमें जो सामाजिक अस्थिरता देख रहे हैं और जो आगामी वर्षोंमें देखेंगे, वे मूलरूपसे वैश्‍विक स्तरपर मनुष्यकी मानसिक अस्थिरताके (मनकी अशुद्धिके) एवं अनिष्ट शक्तियोंद्वारा इन लोगोंके माध्यमसे द्वंद निर्माण करनेके कारण उत्पन्न हुई हैं । इस सूक्ष्म युद्धमें, मांत्रिक अपनी शक्ति बढाने और पृथ्वीकी सात्त्विकता नष्ट करनेके प्रत्येक अवसरका लाभ उठा रहे हैं ।
    पृथ्वीके जलाशयोंका रंग लाल होनेका मुख्य कारण है, पांचवें पातालके मांत्रिक और यह तृतीय विश्‍वयुद्धकी दिशामें बढती कष्टदायी शक्तिका प्रतीक है । निम्नलिखित सारणीमें हमने आध्यात्मिक शोधसे प्राप्त आंकडोंके माध्यमसे, जलाशयोंका रंग लाल होनेके मूलभूत कारणोंको स्पष्ट किया है ।


टिप्पणी
. शारीरिक/ मनुष्य निर्मित कारण : ऐसे कारण उदा. प्रदूषण
२. आध्यात्मिक कारण अर्थात घटनाआेंका मूल कारण आध्यात्मिक है (अनिष्ट शक्तियां, समाजमें अधार्मिक कृत्य आदि जिनसे रज-तममें वृद्धि होती है ।) लाल रंगका प्रादुर्भाव यदि लाल शैवालके कारण है, तो इसका मूलभूत कारण आध्यात्मिक है, जैसे - लाल शैवालमें पाए जानेवाले रज-तमात्मक घटक । इस संबंधमें विस्तृत जानकारी आगे दी है ।
३. इसका अर्थ यह है कि रज-तममें केवल ५% की वृद्धि भी ऐसी घटनाआेंको उत्प्रेरित करती है ।
४. इसका अर्थ यह है कि उस क्षेत्रमें अनिष्ट स्पंदनोंकी १०% वृद्धि, १० की.मी. के अंतरपर अनुभव होती है । वैज्ञानिक समुदायकी सोच सीमित है, इसलिए कि वे प्रत्येक घटनाको केवल बुद्धिसे समझनेका प्रयत्न करते हैं; परंतु जलाशयोंका लाल होना जैसी घटनाआेंके मूल कारणके अधिकांश सूत्र अध्यात्मिक विश्‍वसे जुडे हैं । जब मूल कारण ही अध्यात्मिक है तो उसका बोध केवल आध्यात्मिक शोध अथवा प्रगत छठी इंद्रियसे ही हो सकता है ।
2. अनिष्ट शक्तियां जलका रंग लाल कैसे कर देती हैं ?
    आध्यात्मिक आयामकी उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियां जैसे मांत्रिक, केवल अपनी अलौकिक शक्तियोंसे (सिद्धियोंसे) ही जलका रंग लाल कर सकते हैं; परंतु बिना किसी आधारके कुछ भी करनेमें अधिक आध्यात्मिक ऊर्जा लगती है । इसीलिए अपनी आध्यात्मिक शक्ति बचानेके लिए वे वातावरणमें स्थित रज-तमात्मक पेड-पौधे व मछलियोंका उपयोग कर ऐसा लाल रंग प्रकट करते हैं । शैवालका मूल स्वभाव रज-तम प्रधान है । मांत्रिक आध्यात्मिक काली शक्तिसे शैवालका विस्तार करते हैं । वे शैवालमें अनिष्ट शक्ति भर देते हैं । (शैवाल विस्तारका अर्थ है जलीय व्यवस्थामें विशेषकर माइक्रोस्कोपिक शैवालकी मात्रामें तीव्र वृद्धि अथवा संचय । जब शैवाल विस्तरित होती है, तब वह जलमें काली शक्ति एवं कष्टदायी तरंगोंको भी तीव्रतासे बढाती है ।
    एक अन्य पद्धति, जो मांत्रिक अपनाते हैं - वे मछलियों एवं अन्य रज-तम प्रधान जलचरोंको अपने वशमें कर, जलमें लाल रंग विकसित करनेके लिए उनका उपयोग करते हैं । मछलियोंकी गतिशीलताके कारण अनिष्ट स्पंदन शीघ्रतासे जलाशयोंके बडे क्षेत्रमेंें फैल जाते है । प्रजातियोंमें विशेषतः उनके प्रजननकालमें काली शक्ति भर दी जाती है । तदुपरांत मछलियोंका झुंड केवल श्‍वसनके माध्यमसे ही बडी मात्रामें अनिष्ट शक्ति प्रक्षेपित कर सकता है । जलचरोंको काली शक्ति आवेशित करनेसे, प्रभावित मछलियोंका सेवन करनेवाले लोग अप्रत्यक्ष रूपसे मांत्रिकोंसेे प्रभावित होते हैं । इन पद्धतियोंका उपयोग कर, मांत्रिक जल-जीवनमें काली शक्ति एवं कष्ट अनेक गुना बढाते हैं ।
३.१. लाल वर्षा
    अपनी अलौकिक शक्तियोंसे वे (मांत्रिक) बादलोंको भी प्रभावित कर सकते हैं; जिससे लाल वर्षा होती है । ऐसी लाल वर्षा केरल, दक्षिण भारत और श्रीलंकामें देखी गई है । केरलमें हुई वर्षामें पाए जानेवाले सूक्ष्म लाल कणोंको वैज्ञानिकोंने इससे पहले कभी नहीं देखा और उन्हें वास्तवमें मांत्रिक ही निर्मित करते हैं । मांत्रिक कष्टदायी स्पंदन निर्माण करने हेतु जीवाणुआेंमें परिवर्तन कर, वर्षाके जलको लाल कर देते हैं । वे स्वयं कण अथवा जीवाणु नहीं बनाते क्योंकि ऐसा करनेमें अधिक शक्ति खर्च करनी पडती है । तथापि वे किसी विद्यमान कण अथवा जीवाणुकी विशेषतामें इतना अधिक परिवर्तन कर सकते हैं कि ऐसा लगता है मानो कुछ नया आविष्कार हुआ है ।
(प्रथम चित्र) ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपसे देखनेपर एक बीजाणुका (स्पोरका) चित्र
जिसमें आंतरिक आवरण (कैपसूल) विभक्त दिख रहा है । (स्त्रोत : विकिपीडिया)
(दुसरा चित्र) यदि कणको ध्यानसे देखें, तो उनमें एक मुखमंडल दिखाई देता है । जब अनिष्ट शक्तियां वस्तुआेंपर
आक्रमण करती हैं, तो कभी-कभी वे उसपर अपनी छाप छोड देती हैं ।
४. महाभूतोंका (पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश तत्त्वोंका) उपयोग
    पृथ्वीपर विनाश करनेके लिए मांत्रिक अपनी अलौकिक शक्तियोंके (सिद्धियोंके) बलपर पंचमहाभूतोंका प्रयोग करते हैं । मानव देह प्रमुखतः पृथ्वीतत्त्व एवं आपतत्त्वसे बनी है, इसलिए मानवीय प्रकृति एवं मनुष्यजातिको प्रभावित करनेके लिए मांत्रिक इन दोनों महाभूतोंका अधिकतम प्रयोग करते हैं । कष्टदायी तरंगोंको दूर-दूरतक फैलानेके लिए वायुतत्त्वका भी उपयोग किया जाता है; क्योंकि वह कष्टदायी तरंगोंको संचारित करनेका सरल माध्यम है ।
    जलाशयको कष्टदायी तरंगोंसे लाल कर मांत्रिक इन तरंगोंको तीव्रगतिसे फैला सकते हैं; जबकि पानीके वाष्प बननेपर वही कष्टदायी तरंगें वाष्पके माध्यमसे अधिक तीव्रगतिसे सुदूर क्षेत्रोंको प्रभावित कर सकती हैं । साथ ही इससे प्रभावित जलाशयका तल (नदीका निचला भाग) भी प्रभावित होता है ।
    मांत्रिक केवल उन्हीं स्थानोंको अपना लक्ष्य बनाते हैं, जहां रज-तमके लिए पोषक वातावरण हो। अंततः वे सभी क्षेत्र कष्टदायी शक्तिके आगार बन जाते हैं; जिनका उपयोग मांत्रिक भविष्यमें तृतीय विश्‍वयुद्धको गति देनेके लिए करेंगे !
५. इन आक्रमणोंमें रंगोंका महत्त्व क्या है ?
लाल रंगके माध्यमसे आक्रमण : यह अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणकी श्रृंखलाका प्रथम चरण है । इसमें अनिष्ट शक्तियां अपनी काली शक्तिसे मायावी लाल रंग उत्पन्न करती हैं । इस मायावी लाल रंगका प्रमुख कार्य है दैहिक (शारीरिक) स्तरपर मनुष्यको हानि पहुंचाना । इससे विभिन्न शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, उदा. श्‍वसनसंबंधी रोग, प्राणशक्ति न्यून होना, असाध्य रोग आदि । इन व्याधियोंके कारण मनुष्यकी कार्यक्षमता अत्यधिक घट जाती है ।
हरे रंगके माध्यमसे आक्रमण : २०१६ के इस अगले चरणके आक्रमणमें, मांत्रिक मायावी हरे रंगके माध्यमसे लडेंगे । समुद्र, नदियों, झीलोंका पानी गहरे हरे रंगका दिखाई देगा । इस मायावी हरे रंगसे मानसिक स्तरपर समस्याएं उत्पन्न करनेका ध्येय रखा जाएगा । इस चरणमें बलात्कार एवं रक्तपातकी घटनाआेंमें वृद्धि होगी (२३ जनवरी २०१४ को मुंबईके बाहरी क्षेत्र डोंबिवलीमें हरे रंगकी वर्षा हुई थी ।)
भूरे रंगके माध्यमसे आक्रमण : २०१७ के इस आगेके चरणमें जलाशय भूरे रंगके हो जाएंगे । वर्षा भी गेरुए रंगकी होगी । इस गेरुए रंगके माध्यमसे मांत्रिक मनुष्य देहको पूर्णत: अपने नियंत्रणमें ले लेंगे, जिससे मनुष्यका अपना अस्तित्त्व समाप्त हो जाएगा । वह मांत्रिकोंके हाथकी कठपुतली बन जाएगा । आसुरी शक्तियां मनुष्यके मनको विकृत कर देंगी और वास्तवमें पृथ्वीपर आसुरी शक्तियां ही मनुष्यके रूपमें वास करेंगी । इनसे राष्ट्र और धर्म, दोनोंकी अत्यधिक हानि होगी। वे संतों और सज्जनोंका उत्पीडन करेंगी ।
काले रंगके माध्यमसे आक्रमण : इस अंतिम चरणमें, २०१८ के उत्तराधर्र्में काले रंगके माध्यमसे युद्धके कारण व्यापक स्तरपर विनाश आरंभ हो जाएगा । २०१८ के उपरांतका काल विध्वंसक होगा, समुद्री जल काला-सा हो जाएगा और मानवजाति काली वर्षा देखेगी । राष्ट्र एवं धर्मके अस्तित्वपर संकटके बादल छा जाएंगे । युद्धसे व्यापक स्तरपर विनाश आरंभ होगा ।
६. क्या हम नदी, झील, वर्षा और समुद्रको लाल होनेसे बचा सकते हैं ?
    यदि मानवजाति सात्त्विक जीवनशैलीको अपनानेके लिए अधिकतम प्रयास करे, तो विश्‍वसे रज-तम घटने लगेंगे और सात्त्विकता बढेगी । इन प्रयासोंमें स्वार्थ, लोभ जैसे स्वभावदोष घटाना और साधना आरंभ करना भी सम्मिलित हैं । परिवर्तनके लिए यह अनिवार्य है कि साधना संप्रदाय स्वरूपमें सीमित न होकर, वैश्‍विक हो । साधनाके छ: मूलभूत सिद्धांतोंके अनुसार की गई साधना कालके अनुसार आध्यात्मिक उन्नतिके लिए सर्वाधिक पूरक है । तदनुसार प्रकृतिसंबंधी ऐसी घटनाएं न्यून होंगी ।
    हम अपने सभी पाठकोंसे निवेदन करते हैं कि वे साधनाकी आवश्यकताके विषयमें अपने आसपासके लोगोंको बताएं; जिससे पृथ्वीपर एकत्रित सात्त्विकता अथवा आध्यात्मिक शुद्धता बढे