जो गुरूभक्तिमार्ग से विमुख बना है वह मृत्यु, अन्धकार और अज्ञान के भँवर में घूमता रहता है। गुरूभक्तियोग अमरत्व, परम सुख, मुक्ति, सम्पूर्णता, शाश्वत आनन्द और चिरंतन शान्ति प्रदान करता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास सांसारिक पदार्थों के प्रति निःस्पृहता और वैराग्य प्रेरित करता है तथा तृष्णा का छेदन करता है एवं कैवल्य मोक्ष देता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास भावनाओं एवं तृष्णाओं पर विजय पाने में शिष्य को सहायरूप बनता है, प्रलोभनों के साथ टक्कर लेने में तथा मन को क्षुब्ध करने वाले तत्त्वों का नाश करने में सहाय करता है। अन्धकार को पार करके प्रकाश की ओर ले जाने वाली गुरूकृपा करने के लिए शिष्य को योग्य बनाता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास आपको भय, अज्ञान, निराशा, संशय, रोग, चिन्ता आदि से मुक्त होने के लिए शक्तिमान बनाता है और मोक्ष, परम शान्ति और शाश्वत आनन्द प्रदान करता है।
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समग्र संसार को जो अपना शरीर समझते हैं, प्रत्येक व्यक्ति को जो अपना आत्मस्वरूप समझते हैं, ऐसे ज्ञानी किससे अप्रसन्न होंगे? उनके लिये विक्षेप कहाँ रहा?
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हे साधक! बार-बार माता के गर्भ में मत आओ । कृपा करो, अपने को पहचानो और आत्मज्ञान पाकर मुक्त हो जाओ । शांत, एकांत वातावरण में जाकर सच्चे ब्रह्मवेत्ता सत्पुरूषों के वचनों का चिँतन-मनन करो... आत्मविचार करो । अपना खोया हुआ आत्म-खजाना अवश्य प्राप्त कर सकोगे, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । करो हिम्मत...! मारो छलाँग...! कब तक दु:खी रहोगे! अपनी महिमा में जागो । कोई कठिन बात नहीं है । अपने-आप पर आत्मकृपा करो । फिर तुम्हें महसूस होगा कि संसार और संसार की उपलब्धियाँ, स्वर्ग और स्वर्ग के सुख तुम्हारे आत्मसुख के आगे अत्यंत लघु हैं ।
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बाह्य संदर्भों के बारे में सोचकर अपनी मानसिक शांति को भंग कभी न होने दो।
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जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक दुःखों, से भरा पड़ा है । गर्भवास का दुःख, जन्मते समय का दुःख, बचपन का दुःख, बीमारी का दुःख, बुढ़ापे का दुःख तथा मृत्यु का दुःख आदि दुःखो की परम्परा चलती रहती है । गुरु नानक कहते हैं :“नानक ! दुखिया सब संसार ।”
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इस कलियुग में आत्म-साक्षात्कारी सदगुरू की भक्ति के द्वारा ही ईश्वर-साक्षात्कार करना है।सत्यस्वरूप ईश्वर का साक्षात्कार किये हुए गुरू कलियुग में तारणहार हैं। गुरू से दीक्षा प्राप्त हो जाय, यह बड़े भाग्य की बात है।मंत्रचैतन्य याने मंत्र की गूढ़ शक्ति गुरू की दीक्षा के द्वारा ही जागृत होती है।आध्यात्मिकताकी खान के समान गुरू की सहाय के बिना आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं है। गुरू साधकों के आगे से माया का आवरण एवं अन्य विक्षेप दूर करते हैं और उनके मार्ग में प्रकाश करते हैं।
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कुलं धनं बलं शास्त्रं बान्धवास्सोदरा इमे । मरणे नोपयुज्यन्ते गुरू रेक ो हि तारक : ।। अपना कुल, धन, बल, शास्त्र, नाते-रिश्तेदार, भाई, ये सब मृत्यु के अवसर पर कु छ काम नहीं आते । एक मात्र गुरू देव ही उस समय तारणहार हैं । (श्रीगुरूगीता :१८६)
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भगवदगीता ऐसे दिव्य ज्ञान से भरपूर है कि उसके अमृतपान से मनुष्य के जीवन में साहस, हिम्मत, समता, सहजता, स्नेह, शान्ति और धर्म आदि दैवी गुण विकसित हो उठते हैं, अधर्म और शोषण का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है | अतः प्रत्येक युवक-युवती को गीता के श्लोक कण्ठस्थ करने चाहिए और उनके अर्थ में गोता लगा कर अपने जीवन को तेजस्वी बनाना चाहिए। - पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू।
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दृढ़तापूर्वक निश्चय करो कि तुम्हारी जो विशाल काया है, जिसे तुम नाम और रुप से ‘मैं’ करके सँभाल रहे हो उस काया का, अपने देह का अध्यास आज तोड़ना है । साधना के आखिरी शिखर पर पँहुचने के लिए यह आखिरी अड़चन है । इस देह की ममता से पार होना पड़ेगा । जब तक यह देह की ममता रहेगी तब तक किये हुए कर्म तुम्हारे लिए बंधन बने रहेंगे । जब तक देह में आसक्ति बनी रहेगी तब तक विकार तुम्हारा पीछा न छोड़ेगा । चाहे तुम लाख उपाय कर लो लेकिन जब तक देहाध्यास बना रहेगा तब तक प्रभु के गीत नहीं गूँज पायेंगे । जब तक तुम अपने को देह मानते रहोगे तब तक ब्रह्म-साक्षात्कार न हो पायेगा । तुम अपने को हड्डी, मांस, त्वचा, रक्त, मलमूत्र, विष्टा का थैला मानते रहोगे तब तक दुर्भाग्य से पिण्ड न छूटेगा । बड़े से बड़ा दुर्भाग्य है जन्म लेना और मरना । हजार हजार सुविधाओं के बीच कोई जन्म ले, फर्क क्या पड़ता है? दु:ख झेलने ही पड़ते हैं उस बेचारे को । हृदयपूर्वक ईमानदारी से प्रभु को प्रार्थना करो कि: ‘हे प्रभु ! हे दया के सागर ! तेरे द्वार पर आये हैं । तेरे पास कोई कमी नहीं । तू हमें बल दे, तू हमें हिम्मत दे कि तेरे मार्ग पर कदम रखे हैं तो पँहुचकर ही रहें । हे मेरे प्रभु ! देह की ममता को तोड़कर तेरे साथ अपने दिल को जोड़ लें |’
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भय, चिन्ता, बेचैनी से ऊपर उठो। आपको ज्ञान का अनुभव होगा।
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तूफान और आँधी हमको न रोक पाये। वे और थे मुसाफिर जो पथ से लौट आये।। मरने के सब इरादे जीने के काम आये। हम भी तो हैं तुम्हारे कहने लगे पराये।। ऐसा कौन है जो तुम्हें दुःखी कर सके? तुम यदि न चाहो तो दुःखों की क्या मजाल है जो तुम्हारा स्पर्श भी कर सके? अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्ड को जो चला रहा है वह चेतन तुम्हीं हो।
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तुम निर्भयतापूर्वक अनुभव करो कि मैं आत्मा हूँ । मैं अपनेको ममता से बचाऊँगा । बेकार के नाते और रिश्तों में बहते हुए अपने जीवन को बचाऊँगा । पराई आशा से अपने चित्त को बचाऊँगा । आशाओं का दास नहीं लेकिन आशाओं का राम होकर रहूँगा। तूफान और आँधी हमको न रोक पाये। वे और थे मुसाफिर जो पथ से लौट आये।। मरने के सब इरादे जीने के काम आये। हम भी तो हैं तुम्हारे कहने लगे पराये।। ऐसा कौन है जो तुम्हें दुःखी कर सके? तुम यदि न चाहो तो दुःखों की क्या मजाल है जो तुम्हारा स्पर्श भी कर सके? अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्ड को जो चला रहा है वह चेतन तुम्हीं हो।
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